Book Title: Kadve Such
Author(s): Suvandyasagar
Publisher: Atmanandi Granthalaya

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ सिद्धान्तसारसंग्रह / आ. नरेन्द्रसेन / पं. जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर +२ सन १९७२ सुदृष्टि तरंगिणी (प्रश्नमाला कर्मविपाक)/पं. टेकचन्द्र / ब्र. यशपाल जैन एवं अन्य श्री वीतराग विज्ञान प्रभावना मंण्डल, जयपुर +१ सुनना सबकी । करना आगम की 11 / आ. अभिनन्दनसागर - /* प्रदीप जैन + अनिल जैन, रोहतक + १ सन - सुनहरा अवसर / प्रवचनकार आ. विभवसागर - /* श्री सम्यग्ज्ञान शिक्षण समिति, नागपुर २ सुप्त शेरों । अब ती जागी / आ. सुविधिसागर - /* सुविधि ज्ञान चन्द्रिका सन १९९४ प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद +9 सुभाषितरत्नसंदीह / आ. अमितगति - / पं. बालचन्द्र शास्त्री जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर + ३ सन २००६ सुभाषित रत्नावली / आ. सकलकीर्ति - / * आ. सिद्धान्तसागर, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) +१ सन २००७ / आ. सोमप्रभ - / सूक्तिमुक्तावली शतक औरंगाबाद (महाराष्ट्र) १ सन २००७ सोनगढ़ समीक्षा / नीरज जैन / श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा १ - * आ. सिद्धान्तसागर, सन १९८८ - स्याद्वाद केसरी / गणिनी आर्यिका क्षेमश्री / श्री कुन्थुसागर प्रकाशन संस्थान, अहमदाबाद +१, सन २००१ स्वयम्भू स्तीन / आ. समन्तभद्र स्वरूप-संबधन परिशीलन / आ. अकलंक / आ. विशुद्धसागर जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर +१ सन २००९ स्वानंद विद्यामृत / प्रवचनकार - आ. विद्यानंद / (मराठी अनुवाद) धन्यकुमार जैनी सौ. शरयु दफ्तरी (जैनबोधक), मुंबई +१ सन २००३ स्वानुभव तरंगिणी / आ. विशुद्धसागर - /* विशुद्ध युवा मंच, म.प्र. +१ सन २००८ स्वानुभूतिप्रकाश (मासिक) / श्री सत्श्रुत प्रसारक ट्रस्ट, भावनगर +9 नवम्बर २००८ - हरिवंशपुराण/आ. जिनसेन / पं. पन्नालाल साहित्याचार्य * भारतीय ज्ञानपीठ +१० सन २००६ हाचि साधु ओळखावा । आचार्यश्री आर्यनंदी / श्रेणिक अन्नदाते - / * सुमेरू प्रकाशन +9 सन २०००) कड़वे सच १५५ २४ तीर्थंकर स्तवन रचयिता मुनि सुचन्द्यासागर तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ ! भक्तामर प्रियरवे ! वृषभाय नित्यम् । देवार्चिताय जितकर्म महाबलाय, - तुभ्यं नमोऽजित जिनाय जयोऽस्तु नित्यम् ||१|| शंप्राप्त संभव जिनाय सुबुद्धि बोधात्, तुभ्यं नमोऽस्तु भुवनत्रय शंकरत्वात् । यस्यामलं चरणमस्ति जगत्सुखार्थं, देवं वरं नित नमाम्यभिनन्दनं तम् ॥२॥ धीदेव ! हे सुमतिदायक ! हे सुवन्ध ! तुभ्यं नमोऽस्तु भगवन् ! सुमते ! जिनेन्द्र । पद्मप्रभस्य तनु पद्ममिवास्ति रम्यं, तं शोभनं जिनवरं प्रणमामि नित्यम् ||३|| ध्वस्तारि ! हे जिन ! सुधीर ! सुपार्श्वनाथ ! त्वमेकमेव मम बंध्वसि नाथ ! लोके । चन्द्रप्रभामिव हि यस्य विभाति कान्तिः चन्द्रप्रभाय हि नमोऽस्तु शुभंकराय ||४ || श्री पुष्पदन्त चरणाम्बुज सेवनाय, भक्त्या नमः सुविधये भवतारकाय श्री शीतलस्य वचनं मधुरं समुद्रं, संसारवह्नि शमकाय नमोऽस्तु नित्यम् ॥५॥ श्रेयाञ्जिनाय मुनयः प्रणमन्ति भक्त्या, मुक्त्यङ्गना प्रियतमा ननु ते भवन्ति । यो पूजितोऽस्ति समवासवसेनया स पूज्यो मया सुमनसा जिन वासुपूज्यः || ६ || कड़वे सच १५६

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91