Book Title: Kadve Such
Author(s): Suvandyasagar
Publisher: Atmanandi Granthalaya

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Page 66
________________ और अपने-अपने पुण्य पर छोड़ देना चाहिए । अपनी शक्ति के अनुसार नित्य-प्रतिदिन दान देते हुए महामुनियों की जो पूजा की जाती है उसे भी नित्यमह (नित्यपूजा) समझना चाहिए। (आदिपुराण-३८/२९, भाग २ - पृष्ठ २४२) अर्थात् - अष्टद्रव्य से पूजा करने के बाद मुनियों का पड़गाहन करने पर नित्यपूजा की पूर्णता होती है। इस व्याख्यान के अनुसार श्रावकों को चाहिए कि वे सब प्रतिदिन अपने-अपने घर के सामने स्वयं पड़गाहन करें और पड़गाहन करनेवाले दूसरे श्रावकों के आहारदान की भी प्रसन्नता से अनुमोदना करें । इसप्रकार अनुमोदना करने से उनको कृत के पुण्य साथ-साथ अनुमोदना करने का भी पुण्य मिलता है कीजे शक्तिप्रमाण आ. पायसागर कहते थे - समृद्धि में दान देने का उतना महत्त्व नहीं है, जितना दारिद्र्य में थोड़ा भी दान देना गौरवपूर्ण हैं । (चारित्र चक्रवर्ती - पृष्ठ ५०९) सम्पत्ति का अभाव वास्तविक दारिद्रय नहीं है। सम्पत्ति होकर भी अतिथिसत्कार (दान) नहीं करना ही सच्चा दारिद्रय है। (कुरल काव्य- ९/९) जिनका जीवन जा रहा, बिना दिये मुनिदान । निरर्थक उनका जीना, नहीं धर्म का नाम ।। प्रश्न - हमारे पास थोड़ी सम्पत्ति है तो दान कहाँ से करें? उत्तर - भाई ! विशेष सम्पत्ति हो तो ही दान हो ऐसी कोई बात नहीं और तू उसे तेरे संसार के कार्यों में खर्च करता है या नहीं? तो धर्म कार्यों में भी उल्लासपूर्वक थोड़ी सम्पत्ति में से तेरी शक्तिप्रमाण खर्च कर । दान के बिना गृहस्थापना निष्फल है । अरे ! मोक्ष का उद्यम करने का यह अवसर है । उसमें सभी राग न छूटे तो थोड़ा तो राग घटा । मोक्ष के लिए तो सभी राग छोड़ना पड़ेगा । यदि दानादि के द्वारा थोड़ा राग भी घटाते तुझसे नहीं बनता तो तू मोक्ष का उद्यम किस प्रकार करेगा? (श्रावकधर्मप्रकाश - पृष्ठ एक महिला ने प्रश्न पूछा था कि मोक्षमार्ग की शुरूआत कहाँ से होती है ? तो आ. भरतसागरजी महाराज ने उसका उत्तर दिया था कि मोक्षमार्ग की शुरूआत तो तुम्हारे चूल्हे से होती है । सब सुनते ही रह गये । तब उन्होंने कहा कि जिस महिला के घर में चूल्हे पर शुद्ध भोजन शुद्ध भावनाओं से आहारदान की भावना से बनाया जाता है उस घर के सदस्यों में देव-शास्त्र-गुरु के प्रति समर्पितता आती है, कषाय कम होती जाती है । अत: महिलायें अपने ही कर्मों से स्वर्ग-मोक्ष का द्वार खोल सकती हैं । एक महिला जैन शास्त्रों में वर्णित नियमानुसार शुद्ध भोजन तैयार कर अपने और परिवारजनों के स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग खोल सकती है । और वही महिला कन्दमूलों को पकाकर नरक और निगोद का द्वार खोल लेती है । (प्रज्ञा प्रवाह - पृष्ठ १२३) सम्यक्त्व कौमुदी में कहा हैं - घर पर आये हए शत्र को भी स्नेहपूर्ण दृष्टि, प्रेमपूर्ण वचन, आसन और शक्ति के अनुसार भोजन-पान देना चाहिये। (सम्यक्त्व कौमुदी-५२५, पृष्ठ २४७) शत्रु के साथ भी जब ऐसा सज्जनोचित व्यवहार किया जाता है तब जगद्वन्धु मुनियों के साथ क्या उससे भी श्रेष्ठ व्यवहार नहीं किया जायेगा ? उद्दिष्ट त्याग किसका ? मूकमाटी महाकाव्य : अध्यात्मवृष्टी में कहा है - पापांची करन्सी पुण्यात बदलविण्याचे आहारदान हे महत्त्वपूर्ण साधन आहे. (पृष्ठ १७१) अर्थात् पापों की करन्सी (नोट/संचय) पुण्य में बदलने का आहारदान यह महत्त्वपूर्ण साधन है। इसलिए- गृहस्थ अपनी भक्ति के अनुसार साधु के संयम-साधन के अनुकूल आहार कराकर अपने को धन्य मानते हैं । (चलते फिरते सिद्धों से गुरु - पृष्ठ ४९) उसी प्रकार दातार पात्र की बीमारी या किसी भी परिस्थिति के अनुसार मुनिराज को दवा आदि दे सकता है। वैसे भी उद्दिष्टत्याग व्रत दातार के नहीं, मुनियों के होता हैं। (पृष्ठ ५०) फिर भी श्रावक को पात्र की बीमारी का पता लग जाये और पात्र से बिना कुछ कहे उनके लिए शुद्ध औषधि आदि एवं तदनुकूल आहार बनाता है तो इसमें कोई दोष नहीं है। - कड़वे सच ... ......११६ - कड़वे सच

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