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त्यागेनोभयभेदसङ्ग नितरां योऽभूदहो! नौरिव पापात् पात्वपरिग्रही स सुविधिः तीर्थकरो निर्मलः ।।
७. पंचम काल में मुनि ?
क्या कहता है आगम ? प्रश्न - ये कड़वे सच पढ़कर प्रश्न उठता हैं कि क्या इस पंचम काल में भी शास्त्रोक्त आचरण करने वाले भावलिंगी मुनि होते भी हैं ?
समाधान - आचार्य कुन्दकुन्ददेव अष्टपाहुड में कहते हैं -
भरहे दुस्समकाले धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स । तं अप्पसहावठिदे ण ह मण्णइ सो वि अण्णाणी ।।मोक्षपाहुड ७६।। अर्थात् - भरतक्षेत्र में दुःषम नामक पंचम काल में मुनि को धर्म्यध्यान होता है तथा वह धर्म्यध्यान आत्मस्वभाव में स्थित साधु को होता है ऐसा जो नहीं मानता वह अज्ञानी (मिथ्यादृष्टि) है। (पृष्ठ ६५१)
अज वि तिरयणसुद्धा अप्पा झाएवि लहहि इंदत्तं ।
लोयंतिय देवत्तं तत्थ चुआ णिव्वुदि जंति ||७७।। अर्थात् - आज भी रत्नत्रयसे शुद्धता को प्राप्त हुए मनुष्य (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से सहित भावलिंगी मुनि) आत्मा का ध्यान कर इन्द्र पद तथा लौकान्तिक देवों के पद को प्राप्त होते हैं और वहाँ से च्युत होकर निर्वाण को प्राप्त होते हैं । विशेषार्थ - जो कहते है कि इस समय महाव्रती नहीं वे नास्तिक है, उन जिनशासन से बाघ समझना चाहिये । (पृष्ठ ६५२)
मैं एक बात पूछता हूँ कि यदि आपको पेट का ऑपरेशन कराना हो तो क्या बिना जाने चाहे जिससे करा लेंगे? डॉक्टर के बारे में पूरी-पूरी तपास करते हैं । डॉक्टर भी जिस काम में माहिर न हो वह काम करने को सहज तैयार नहीं होता ।... पर धर्म का क्षेत्र ऐसा खुला है कि जो चाहे बिना जाने-समझे उपदेश देने को तैयार हो जाता है और उसे सुनने वाले भी मिल जाते है। (धर्म के दसलक्षण - पृष्ठ ११३)
उन अज्ञानियों को पं. रतनचन्द भारिल्ल चलते फिरते सिद्धों से कड़वे सच ..................... - ९५
गुरु में सत्य का बोध कराते हैं - "शाखों के कथनानुसार पंचम काल के अन्त तक भी भावलिंगी मुनि होते रहेंगे। आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने प्रवचनसार, नियमसार एवं अल्पाहा में जो निर्देश दिए हैं, वे सब पंचम काल के मुनियों के लिए ही दिए हैं।" (पृष्ठ ३४)
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा सम्पादित पं. टोडरमलकृत आत्मानुशासन टीका (श्लोक ३३) में कहा है - चिरकालवर्ती महामुनियों के मार्ग पर चलनेवाले शिष्य (मुनि) आज भी प्रत्यक्ष देखे जाते हैं । (पृष्ठ ३१) ... अभी भी मुनिधर्म के धारक कोई-कोई जीव प्रत्यक्ष देखे जाते हैं । (पृष्ठ ३२)
__श्री वीर निर्वाण कल्याणक दिन (संवत २४६९) के अवसर पर राजकोट में कानजी स्वामी ने कहा था -
साधु, अर्जिका, श्रावक और श्राविका पंचम आरे (पंचम काल) के अंत में भी आत्मा का भान करके एकावतारीपना प्राप्त करेंगे, तो फिर अभी क्यों नहीं हो सकता ? (अर्थात् ये मुनि आदि चारों आज भी हैं ।) (स्वानुभूतिप्रकाश-नवम्बर २००८, पृष्ठ ६)
पंचम काल में हए मुनि पंचम काल के जीवों को यह बात समझाते हैं । (श्रावकधर्मप्रकाश – पृष्ठ ६५)
इससे स्पष्ट होता है कि इस दुःषम पंचम काल में भी भावलिंगी मुनि होते हैं, और वे अपने छठे /सातवें गुणस्थान के अनुसार शास्त्रोक्त आचरण भी करते हैं । भले ही उनकी संख्या अल्प हो सकती है परन्तु उनका अभाव नहीं है। इस सत्य की स्वीकृति में महान पुरुषार्थ है।
मुनि की पहचान १००/१-?
दिगंबर जैनों के लिए - बाह-अभ्यंतर परिग्रह रहित निग्रंथ गुरु है । (मोक्षमार्गप्रकाशक - पृष्ठ १३६)
प्रश्न - कोई नग्न मनुष्य मुनि है या नहीं यह कैसे जानना चाहिए? समाधान - चार बाह्य चिह्नों से मुनि जाने जाते हैं -
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कड़वे सच
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