Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 15
________________ ARRINORINNI द्वितीय परिच्छेद । दिव्य स्त्री ग्रह और उनके लक्षण 12: 31 ज्वालामालिनी कल्प। अर्थ-देव सदा यवित्र रहता है, नाग सोता है, सब अंगको तोड़ डालता है और नित्य ध पीता है। यक्ष बहुत प्रकारसे रोता है और हसता है ॥ ७॥ गंधर्वो गायति सुस्वरेण सुब्रह्म राक्षसः संध्यायां । जयति च वेदान् पठति स्त्रीष्वनुरक्तः सगर्वश्च ॥ ८ ॥ . अर्थ-गंधर्व अच्छे स्वरसे गाता है, ब्रह्म राक्षस संध्याके समय जप करता है, वेदोंको पढ़ता है, स्त्रियोंमें अनुरक्त रहता है, और बड़ा घमंडी होता है ॥ ८ ॥ नेत्रे विस्फारयति त्वंशगति ज भति मनोति हस्ति च भूतः । मृच्छति रोदिति धावति बहुमोजी व्यंतर स्तथा भुवि पतति ॥९॥ अर्थ-भूत आंख फाड२ कर देखता है, शिथिल गतिले जंभाई लेता है, मिन२ करके बोलता है, और हँसता है। व्यंतर मूर्छित होता है, रोता है, दौडता है, बहुत भोजन करता है, और जमीन पर गिर२ पड़ता है ॥९॥ दिव्यपुरुषगृहाणां लक्ष्मणमेवं मया समुद्दिष्टं। दिव्यस्त्रीग्रहलक्षणमधुना व्यावयेते शृणुत ॥ १०॥ अर्थ-इस प्रकार दिव्य पुरुष ग्रहोंका लक्षण कहा गया अब दिव्य स्त्री ग्रहोंका लक्षण कहा जाता है ॥१०॥ काली तथा कराली कंकाली काल राक्षससी जंधी। प्रेताशिनी च यक्षी वैताली क्षेत्रवासिनी चेति ॥११॥ अर्थ-काली, कराली, कंकाली, कालराक्षसी, जंघी, ताशिनी, यक्षी, बैताली, और क्षेत्रवासिनी, यह नौ स्त्री ग्रह हैं। कृष्णां भवेच्छरीरं हृत्करलोचनानि दाते।' काल्यामपि देहस्य करालिकाों न भुन्तऽयं ॥ १ अर्थ-कालीसे पकड़े हुयेका शरीर कृष्ण हो जाता है। और हथेली हृदय तथा नेत्रोंमें जलन मालूम होती है । करालीले पीडित अन्न नही खाता ॥ १२॥ मुखमापांडुरमंगं कृशंचकं कालिका गृहीतस्यभ्रमति । निशि वदति कौलिकमथाहासं करोति राक्षस्यातः ॥१३॥ अर्थ-कंकालीसे पकड़े हुएका मुख तथा अंग पीला पड़ जाता है । राक्षसीसे पीड़ित हुआ रात्रिमें घूमता है, ऊंचीर बातें करता और अट्टहास करके हंसता है ॥ १३ ॥ जंधी ग्रहीत मनुजी मच्छेति रोदिति कृशं शरीरं स्यात् । प्रेताशिनी ग्रहीतश्चकितौ वा भी करध्वनिना ॥ १४ ॥

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