Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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LIKELA
ज्वालामालिनी कल्प।
Romensensonanesam
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पाटल काम मदन तरूबिभीत तरूरपि च काकजंघा च । बंध्या, च देव दारु च बृहती हि तयं च सहदेवी ॥४॥
अर्थभगपुष्पि, नागकेशर, शलनखी, पुत्रजीवी, शीहु, एरण्ड, तुलसी, सध्या अपामार्ग। करि करम कर विचूर्णित वृषणाक्षच्छागमूत्रमिश्रेण। तचम्मकारकुन्डांबुनौषधं पेषयेत्सर्व ॥९॥EEP
अर्थ-और गजमद, इन सबका चूर्ण करके बैल और बकरेके मतमें मिलावे । तथा उन सब औषधियोंको चमारके कुन्डके पानीसे पीसे ॥ ९॥ कृत्वा द्विभाग मेकां न्यस्य क्वार्थ प्रगृह्यते मूत्रः। अर्धावत काथे द्वितीय मालोडयेद्भागं ॥ १०॥
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अर्थ-पाटलिका, काम, मदनतरु, भिलावा, काकजंघा, बन्ध्या , देवदारु, बृहती, सहदेवी ।
गिरिकर्णिका च मदिमल्लिका शैलाके हस्तिकर्णाश्च । *स्तुनिम्ब महानिम्बौ शिरीष लोकेश्वरी दान्याः ॥५॥
अर्था-गिरिकर्णिका, नदिमल्लिका, अर्कशैल, हस्तिकर्णी, नीम, महानीम, सिरस, लोकेश्वरी, दान्य । पारितरु महावृक्षो कड़क हारोपयोगिमूलानि । सितक रक्तजपाददिब्राह्मे द्वय कोकि लाक्षश्च ॥६॥
अर्थ-पारिवृक्ष, महावृक्ष, कटक हार, उपयोगि मूल; सफेद और लाल, जपादंदि और ब्रह्मी, कोकिलाक्ष ॥७-६॥
भृगश्च देवदालिकटुकम्पनी सिंहकेशरं चैव।। घोषालिका भक्तौ यति सुन्यतिमुक्तक लताश्च ॥ ७॥
अर्थ-मृग. देवदालि, कटुकंबी, सिंहकेशकर, घोषालिका, अकभक्ति, पतिलता, मुनिलता, अतिमुक्तकलता। भगपुष्पि नागकेशर शार्दूलनखी च पुत्रजीवी च । शीग्र हु तथैरण्ड स्तुलसी सध्यापमाया श्च ॥८॥
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"- अर्थ--उसके दो भाग करके एक भागका काथ मृत्रके साथ तैयार करे, और आधे क्वाथ में दूसरे भागको डबोवे ॥१०॥ केगु करुंजे रंडा कोल्लविभीत द्विनिंब तिल तैलें। सम भागेन गृहीतं क्वाथेनसह क्षिपेक्वाथे॥११॥
अर्थ-कंगु, करंज, एरंड, अंकोल मिलावे. निंब और तिलके तेलको बराबर लेकर क्वाथके साथ काथमें ही डाल दे ॥ ११॥
भूत गृहे भूत दिने भूत महिजात मंडपपाधः । कुजमारे भौमांशाभ्युदये प्रारभ्यते पक्तुं ॥ १२ ॥

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