Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 45
________________ ज्वालामानिकप कुंकुम कर्पूरा गुरु मृग मद रोचनादि मिय्यमिदं । परिलिख्य पत्रे समर्चयेत्सर्वं वश्यकरं ॥ ७ ॥ ७४ अर्थ — इस यंत्र को भोजपत्र पर कंकुम, कपूर, अगर, कस्तूरी और गौरोचन आदिसे लिखकर पूजा करें तो सब वशमें हों ॥ ७ ॥ मोहन वश्य यंत्र TRE हरि गर्भ स्थित नाम तत्परिवृतं रुद्रत्रिमूर्त्या हतः । पुटितं से नवकार संगतं वेष्टयन्तु टान्त स्वरैः ॥ बहिरशंबुज पत्र केष्व यजया जंभादि सम्बोधनं । बिलिखेन्मोहय मोहया मुकनरं वश्यं कुरुद्विर्व्वषट् ॥ ७ ॥ अर्थ -- एक अष्टदल कमलकी कर्णिकामें नामको ई ई ई सव व और ठसे घेर कर उसके चारों ओर गोलाकार में सोलहों स्वर लिखे फिर बाहर पत्रोंमें पूर्वादिक्रम आठों निम्नलिखित आठ मंत्र लिखे अये जये मोहय मोहय अमुकं नरं वश्यं कुरु कुरु वषट् अये जंभे मोहय मोहय अमुकं नरं 19 59 अये विजये मोहय मोहय अये मोहे मोहय मोहय अये अजिते मोहय मोहय अये स्तम्भे मोहय मोहय 19 29 19 19 J." " " カラ " " " ॥ षष्टमपरिच्छेद अये अपराजिते मोहय मोहय अमुकं नरं वश्य कुरु कुरु वपट् । अये स्तंभनि मोहय मोहय पत्राय मतं तदन्तरगतं ह्रीं ह्रीं च बाधे लिखे पुनरुक्त मंत्र बलयं श्रीं श्रः पदं तद् वहिः । यंत्र मोहन as संज्ञकमिदं भ्रूज्जे विलिख्यार्थ येत् धतूरस्य रसेन मिश्र सुरभि द्रव्ये भवेन्मोहनं ॥ ९ ॥ अर्थ-पत्रको कोनेमें अंदरकी ओर कों और बाहर दोनों ओर ह्रीं ह्रीं लिखकर गोल मण्डल बनाकर उसमें "श्रां श्रीं श्रीं श्रीं श्रः" बीजोंको लिखे। इस मोहन वश्य नामके यंत्रको भोजपत्र पर धतूरके रस और सुगन्धित द्रव्योंसे लिखनेसे मोहन होता है ॥ ९ ॥ स्त्री आकर्षण यंत्र ep ह्रीं मध्यस्थित नाम दिक्षु विलिखेत् तद्वि दिक्षुप्यजं । बाह्ये स्वस्तिक लांछन शिखि पुरं रेफे बहिः प्रावृतं ॥ तद् वाशिपु त्रिमूर्तिवलयं वन्देः पुरं पावकैः । is a fष्टतम मंडल मतस्त द्वेष्टितं चांकुशैः ॥ १० ॥ अर्थ - एक स्वस्तिकका चिह्न बनाकर उसकी दिशाओं में ह्रीं के मध्य नाम और विदिशाओं में क्रों लिखे, उसके चारों ओर तीन अनि मण्डल रं सहित बनाने। इसके पश्चात् तीन वायु मण्डल यं बीजसे बनाकर यंत्रका क्रों से निरोध कर दे ॥ १० 101

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