Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 77
________________ HINMANN AINMUNAINMAINMMANOMANIMAHARANAMANARANUARMINARAINIMINARUmore ११३८ । स्वालामालिना कल्प। दशम परिच्छेद । [१३९ ॐद्रां द्रीं ज्वालामालिनि मम नामि रक्षर स्वाहा । मन्त्रोद्धार ॐद्रां ह्रीं ज्वालामालिनि मम वक्षः स्थलं रक्ष२ स्वाहा । ॐद्रां द्रीं ज्वालामालिनि मम आननं रक्षर स्वाहा । 'ॐ ज्वालामालिनी द्रां द्रीं क्लीं ब्लूहीं आं हां क्रों क्षीं नमः ॐ द्रां द्रीं ज्वालामालिनि मम शीर्ष रक्ष२ स्वाहा । ताम्बूल कुंकुम सुगन्धि विलेपनादीन् । कूटाक्ष पिंड प्रथ शून्य भपिंड युग्मं, यः सप्तवार मभि मंत्र्य ददाति यस्यै ॥ तद्वेष्टितं भपर पिंड कलत्रि देहैः। सातस्य वश्य मुपयाति निजानुलेपात् । बाह्यष्ट पत्र कमलं परघादि पिंडान् । स्त्रीणां भवे दभिनवः स च कामदेवः ॥५॥ -विन्यस्य तेषु परतो नव तस्त्र वेष्ट्यं ॥३॥ अर्थ-इस मंत्रको सिद्ध करनेवाला पुरुष तांबूल ककुम अर्थ-कटाक्षर पिंड शून्य पिंड दो। भ, य, र, पिंडसे और सुगन्धित लेप आदिको इस मन्त्र से सातबार मन्त्रित करके वेष्टित करके त्रिकल त्रिदेह (स्वरों)से वेष्टित करे । उसके पश्चात् । जिसको देता है। वह स्त्री या पुरुष सेवन करते ही साधकके. आठ पत्रोंमें य र ध आदिके पिंडोंको लिखकर बाहर नव बशमें हो जाते हैं। यह साधक स्त्रियोंके लिए नया कामदेव तत्वोंसे वेष्टित करे ॥३॥ बन जाता है ॥५॥ हा मां पुरोद्विप वशीकरणं तदने, मायाक्षरं प्रणव सम्पुट मा विलिख्य, क्षी वीजकं शिखि मती वरपंच बाणैः। बाह्येनि सम्पुट पुरंरर कोण देशे। मंत्रा नमोन्त विनयादिक लक्ष जाप्यं, तद्वेष्टितं शिखि मतीवर मूल मन्त्रा, होमेन देवि वरदा जपतां नराणां ॥४॥ दायाति देव वनितापि खरानि तापात् ॥६॥ मूल मंत्र अर्थ-माया अक्षर (ही) को प्रणव (ॐ) के संपुटमें अर्थ_हां आं द्विप वशीकरणं (क्रों) क्षों के पश्चात् । लिखकर बाहर अग्नि मण्डलोंका संपुट बनाकर उनके कोनोंमें देवीका नाम और पांच बाण सहित मन्त्रके आदिके विनय । "" बीज लिखे । सबसे बाहर ज्वालामालिनी देवीके मूल (ॐ) और अंतमें नमः लगाकर एक लक्ष जप करके होम । मन्त्रसे वेष्ठित करके तेज अनिकी आंच देनेसे देवताओंकी भी करनेसे देवी जप करनेवाले पुरुषोंको वर देती है ॥ ४ ॥ स्त्री आ जाती है ॥६॥

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