Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 76
________________ म छह हाथीके समान अलि ) और वरदान चक्र, धनुष, बाण वं झं हंसः परं झसर सर सर ए सत्सुधा वीज मंत्र र्जालामालिनि स्थावर विष संहारिणि रक्ष रक्ष ॥ ६॥ एघेहि होकारनादै बल दनल शिखा कल्प दीर्घोय केशझामास्यैती वलत्रै विषम विष धरालं कृतैस्तीक्ष्ण दंष्ट्रः । भतः प्रेतैः पिशाचैः स्फुट घटित रुपा बाधितो ग्रोप सग्गेम् । धूलीकृत्य स्वधाना धन कुच युगले देवि मां रक्ष रक्ष ॥७॥ को को शाकिनीनां समुपगत मत ध्वंसिनी नीर जास्ये। ग्लो क्ष्म वं दिव्य जिह्वा गति मति कुफ्ति स्तंभिनी दिव्य देहे । फट फट् सर्व रोग ग्रह मरण भयोच्चाटिनी घोर रूपे। आंक्रां थीं मंत्र रूपे मद गज गमने देबि मां पालयत्वं ॥८॥ इत्थं मंत्राक्षरोत्थं स्तवन मनुपमवहि देव्याः प्रतीतम् । विद्वेषोच्चाटन स्तंभन जन वशकृत पाप रोगापनोदि ॥ प्रोत्सप्पे जंगम स्थावर विषम निष ध्वंसनं स्वायुवा रोग्य । धैर्यादीनि नित्यं स्मरति पठति यः सोऽश्नुतेऽभीष्टसिद्धिम् ॥९ अर्थ- इस प्रकार यह मंत्राक्षरोंसे निकाला हुआ ज्वालामालिनीदेवीका अनुपम स्तोत्र है। जो इसको नित्य स्मरण करता है और पढ़ता है वह अपनी इच्छित सिद्धिको पाता सीमोनसे विद्वेषण उच्चाटन स्तोमन और वशीकरण होते हैं। यह पाप तथा स्थावर और जंगम विषको नष्ट करता है। तथा आयु आरोग्य और ऐश्वर्य आदिको देता है ॥९॥ F-10 इतिभो चाहामारिनी स्तोत्र समाप्तम् ।' । १३७ अथ ज्वालामालिनीकी अन्य साधन विधि पाश त्रिशूल ऊष चक्र धनुः शरा च, सन्मातुलिंग फल दान कराष्ट हस्ता। मातङ्ग तुङ्ग महिषाधिप वाहयाना, सा पातु मां शिवमति शरदिंदु वर्णा ॥१॥ अर्थ-पाश, त्रिशूल, मछली, चक्र, धनुष, बाण, मातुलिंग (बिजौरा फल ) और वरदान सहित आठ हाथोंवाली हाथीके समान ऊंचे भेसे पर चढ़कर चलनेवाली। और शरत् कालके चंद्रमाके समान वर्णवाली ज्वालामालिनी मेरी रक्षा करे ॥१॥ द्रां द्रीं सुबीज सुख होम पदांत मंत्र, राज्यालिनी प्रमुख गै मम पाद नाभि । वक्षस्थलाननशिरांसि च रक्ष रक्ष, त्वं देव्यमीभि रति पंच विधैः सु मंत्रैः ॥२॥ अभी-उत्तम बीज द्रां ह्रीं की आदिमें सुख (ॐ) लगाकर ज्वालामालिनी मम पादौ नाभि वक्षः स्थलं आननं शीर्ष रक्षर पदोंके पश्चात् अंतमें होम (स्वाहा) पद सहित पांच सुन्दर मंत्रोंसे शरीरकी रक्षा करे ॥२॥ मंत्रोद्धार ॐद्रां द्रीं ज्वालामालिनि मम पादौ रक्ष२ स्वाहा ।

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