Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 74
________________ १३२] वालामालिनी काप। खड्ग, त्रिशल, पाश और धनुषबाण हो ॥ ऐसी देवीकी मूर्तिको उत्तम आसनसे स्थापित करके उसके आगे जप करे । जपके समय लाल, पीले और उज्वल पुष्प तथा अक्षत और काले, नीले, पीले तथा उज्जल फल और लौंग रक्खे ॥ ___दशम परिच्छेद। [१३३ यह प्रातःकाल उठकर करे । और- 'आं क्रों ह्रीं' इस मंत्रसे विसर्जन करे। फिर कुमारिको जिमाकर स्वयं भोजन करे। होम विधि सोलह अंगुल लम्बे चौडे तथा गहरे हवनकुण्डमें पंचामृत दशांग धूप, खीर, खांड और नारियलसे हवन करे । पहिले पीले जलसे स्नान कर ले। फिर: ___ " ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं हः हल्ब्यू" इस मंत्रसे सात वार अभिमंत्रित करके शिखा बंधन करे.. लाल कपड़े पहिने, पीले आसन पर पद्मासनसे बैठे। फिरः-- 'प्रां प्रीं प्रौं प्रा फ्ल्यू आत्मरक्षां कुरु२ ह्रौं फट् स्वाहाः। इस मंत्रको इक्कीस वार पढकर शरीर रक्षा करे और इसके । पश्चात् जाप होम आकर्षण करके स्तोत्र पढे। । वस्त्र और आभरणसे आह्वानन करके पहिले तेरह फिर चार और फिर पन्द्रह वार करके त्रयोदशी चतुर्दशी और अमावस्या जानकर कृष्णपक्षमें स्थापना करे। मंत्र यह है: झांझो झझौं झः इस यू अंज संचकार अंचुक भूषणानि संगृह्यतार सन्निधिकरणं ।" (इति संधिसूत्र प्रथम संधि समाप्त) अथ मन्त्राकर्षण द्वितीय विधि जमव्यू हं ह्रीं ह्रीं क्लीं ब्लू देवान् नागान् यक्षान् गंधर्वान् ब्रह्मान् भूतान् व्यंतरान् सर्व दुष्टग्रहान् आकर्षय२ ॥ बनेन मंत्रेण आवेशनं स्थापनं । "हां ही है हौं हः ज्वलर ररररररर" अनेन मंत्रेण होम कुण्डमध्ये मरिचाणि निक्षिपेत् । "देवग्रहान् नागग्रहान् यक्षग्रहान् गन्धर्वग्रहान् ब्रह्मग्रहान् राक्षसग्रहान् भूतग्रहान् व्यंतरग्रहान् सर्वदुष्टाहान शतकोटिदेवतान् सहस्रकोटि पिशाचान् दह२ पचर छिन्द२ मिन्दर हां हु हुँ फट् स्वाहा अनेन मंत्रेण देवीशक्त्या देववशीकरणं शाकिनी डाकिनी शत्रग्रहान् अनेन मंत्रण होमं कुर्यात सहस्र १२००० शत्रुनाशं । अनेन मंत्रेण गजेन्द्रनरेन्द्रसर्वशत्रुवशीकरणं पूर्वमंत्र स्मरणीयम् । इति ज्वालामालिनी स्तोत्र साधन मंत्रविधि सम्पूर्णम् ।।

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