Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१५४ ]
दानो कप
ग्रहान् दहर यक्ष ग्रहान् दहर नाग ग्रहान् दहर गंध ग्रहान् दह दह ब्रह्म ग्रहान् महर राक्षस ग्रहान दहर भूत ग्रहान् दहर व्यंतर ग्रहान दहर सर्व दुष्ट ग्रहात्र दहर शत कोटि देवान् दहर सहस्र कोटि पिशाचानां राज्ञे दहर घेर स्फोटय स्फोटय मारय२ धगर वगित मुखे ज्वालामालिनि ह्रां ह्रीं हूँ
ह्रः स शत्रु ग्रह हृदयं दहर पचर छिंदर मिंद मिंद हः हः हा हा स्फुटयर घे घे अल्थ्यू क्षां क्षीं क्षू क्षौं क्षः स्तंभय २ मन्यू भ्रां श्रीं श्रीं भ्रः ताडय ताडय मल्यू ग्रां श्रीं प्रू प्र त्रः नेत्रे स्फोटयर दर्शयर फल्यू यां याँ यूं यो यः प्रेषय२यू घांघों घ्रः जटरं भेदयर डम्ल्यू ड्रां ड्रड्रड्रड्रः मुष्टि बंधेन बंधयर खन्यू खां खीं खं खौं खः ग्रीवां भंजय २ म्यू ह्रां ह्रीं ह्रौं छः अंत्रान छेदयर ढां द्रीं हूं ह्रः महा विद्युत्पाषाणा नर बल्ब्यू श्रीं श्रत्रः समु मजवर हव्यू हा ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः सर्व डाकिनी मर्दय २ सर्व योगिनी स्तर्जय २ सर्व शत्रन ग्रासय २ ख ख ख ख ख ख ख खादय २ सर्व दैत्यान् ग्रासयर सर्व मृत्युन नाशय र सर्वोपद्रवान् स्तंभय २ जः जः जः दह दह पच पच घरुर परुर खड्ग रावणम् विद्यां घातय २ चंद्रहास खङ्गेन छेदयर भेदयर डरुर छरुर हरुर फुटरु घे घे आंकों क्षां क्षीं क्षौं ज्वालामाविनी आत्यति स्वाहा ।
अयं पटित संसिद्ध श्री ज्वालन्याथि दैवत ।
माछ
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माला मंत्रः प्रजाप्पा है, गृहरोग विषादिहृत् ॥ १ ॥
अर्थ – यह श्री ज्वालामालिनीदेवीका माला मंत्र केवल पढनेसेही सिद्ध हो जाता है। इसका जप इत्यादि करनेसे ग्रहरोग और विष आदि नष्ट होते हैं ॥ १ ॥
इतिम्रो नामानि माछा मंत्रम् |
ज्वालामालिनी वश्य मंत्र
"ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ह्रीं क्लीं ळू द्रां द्रीं हंसः यहीं ज्वालामालिनी देवदत्तस्य सर्वजन वश्यं कुरु स्वाहा । "
नित्य २१ दिन जपै रक्त विधानेन सर्वजन वश्यं वार ७-२१-१०८ अवीर मंत्र सिरपर नाखे स्त्री-पुरुष वश्य होंय, सवा पैसेकी सोरनी बांटे ॥
अथ श्री चंद्रप्रभ स्तवनम्
ॐ चन्द्र प्रभु प्रभाशीषी, चन्द्र शेखर चंद्रजं । चंद्र लक्ष्यांक चंद्रांक, चंद्र बीज नमोस्तुते ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं चंद्रप्रभः, ह्रीं श्रीं कुरु कुरु स्वाहा | इष्ट सिद्धि: महारिद्धि, तुष्टि पुष्टि करोद्भवः || २ || द्वादश सहस्र जतो, बांछितार्थ फलप्रदः ।
महता त्रिसंध्यं जप्तवा, सर्व व्याधि त्रिनाशकः ॥ ३॥

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