Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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ज्वालामालिनी ३५
ANINNRAINRIm mon
अर्थ-रुद्रजटा, श्वेत गुखा और लडरिकाको सप्पंके मुखमें रखकर तीन दिनके पश्चात् निकालकर सबका चूर्ण करे। और अपने पांचों मलोंमें डाल दे ॥४१॥ गोमय लिप्से हरि निकंदे परिभाव्य पाचयेद्विधिना । चूमदं सकलजगद्वश्वकरं कामबाणारख्यं ॥ ४२ ॥
अर्थ-किर इसके गोबरले लिपे हुए हरिनिकंद में भावित करके विधिपूर्वक पकाये । यह समस्त जगतको वशमें करनेवाला कामबाण नामका चूर्ण है ॥ ४२ ॥
दशरारिक चर्ण कनकेन्द्रवारुणीखर कर्णिकात्रिसंध्यानां । विस्फोटनलज्जरिकाद्विजदंडीनां वहिर्व टिका ॥४३॥
अर्थ-कनक, इंद्रवारुणी, खर कणिका और त्रिसंध्या, बिस्फोटन, लञ्जरिका और द्विजदडीके साथ सबकी गोली बनाकर ॥ ४३ ॥ भांडे निधाय तस्मिन् पृथकर मरीचलवणसर्षप गुठी। धान्याजमोदचर्णकहरितकक्रमुकपिप्पल्यः ॥ ४४ ॥
अर्थ-बरतनमें रक्खे और उसीमें पृथक२ मिरच, नमक, सरसों, सोंठ, धान्य, अजमोदका चूर्ण हरीतक, क्रमुक और पीपलको ।। ४४॥
शप्रम परिच्छेद । भाव्याः स्वमलैः सम्यक् तद्ध पै द्ध पिताः पृथक् पृथगिति च । दशरारि काभि धानाः सकलजगवश्यकारिण्यः ॥ ४५ ॥ - अर्थ-अपने मतोंमें भावित कर२ के सुखावे । यह सब जगतको वशमें करनेवाले दशरारिक नामवाले चूर्ण हैं ॥४५॥ Kavi योनिशोधक लेप
द्विरदमदकुष्टमृगमदकप्पू रोन्मतपिप्पली काम। रुद्रजटामधुसैंधवनागरमुस्तासुयष्टीकं ॥ ४६॥
अर्थ-गजमद, कूठ, मृगजद, कपूर, उन्मत्त, पिष्पलि, काम, रुद्र, जटा, मधु, सैंधव, नागरमोथायष्टीक ॥४६॥ सूरणटंकणपिप्पलिशरपुखीमातुलिंगचणकोष। महकाम्लसमेतं भगनिजर्जरकारणं लिप्तं ॥४७॥
अर्थ-सूरण, टंकण, पिप्पलि, शरपुखी, मातुलिंगी, चने, सहकार और आंवला लेथे जानेसे योनिका संशोधन करते हैं ॥४७॥ कप्पू रैलामाक्षिकलञ्जरिकायुक्तपिप्पलीकामं । भगनिजैरं प्रकुर्यात् कुरुटिकाक्षीरसंयुक्त ॥ ४८ ॥
अर्थ-कपूर, इलायची, माक्षिक, लज्जरिका, पिप्पलि और कामको कत्तीके दूध में पीसकर लेप करनेसे योनि संशोधन होता है ॥४८॥
सन्तानदायक औषधि शिषफणीफलचव्यचित्रकमहीकूश्मांडिनिःपर्णिकाः ।
मकामा

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