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मनकल्प
पिष्टमयानि नवग्रहरूपाणि स्वर्णवर्णयुक्तानि । तान्यात्मवचनच रुकस्योपरिसंस्थापयेत् प्राग्वत् ।। २५ ।।
अर्थ - फिर पिसे हुए द्रव्य के स्वर्ण वर्णवाले, नवग्रहोंके रूप बनवा कर उनको पूर्ववत् अपने चरुके साथ स्थापित करे ||२५||
reat मास्करभौमपीत बुधसुरगुरु शशांक शुक्तौ । श्वेतच शनिश्चरराहुकेतवः कृष्णवर्णाः स्युः ॥ २६ ॥
अथ:---
-सूर्य और मंगलको रक्त वर्ण, बुध और गुरुको पीत वर्ण, शुक्र और चंद्रमाको श्वेत वर्ण तथा शनैश्वर राहु और केतुको कृष्ण वर्णका बनावे ॥ २६ ॥
सुरभितर मलयजाक्षतकुसु मोज्वलदीपधूपसंयुक्तः । चकैर्निवेदयेतैः क्रमेण तं स्वेतमंत्रेण ॥ २७ ॥
अर्थ - फिर अत्यन्त सुगन्धित, चंदन, अक्षत, पुष्प, उज्वल दीपक, धूप और चरुको लेकर उनको निम्न लिखित मंत्रसे दे ॥ २७ ॥
नवग्रह मन्त्र
ॐ ज्वालामालिनि सर्वाभरणभूषिते ग्लौं २ हक्कर क्लर ल२ ल२ सर्वमृत्यून् हनर त्रासय त्रासय हूँ हूँ २ हंसः फट् घेर सर्व रोगान् दहर हनर शीघ्रं देवदत्तं रक्ष२ नवग्रह देवते बलिं गृह २ २ स्वाहा ।
अष्टप परिच्छे
एवं निवर्धficer तं चरुकं निक्षिपेनदी मध्ये | स्नानोद्भवमंडल के वरेणसहितेन मंत्रेण ॥ २८ ॥
अर्थ - इस प्रकार स्नान के पश्चात् उस मंडल में इस मंत्रसे चरु, देकर नदीमें विसर्जित करदे ॥ २८ ॥
स्नानान्तरमथ वस्त्रालंकाररत्न कलशाद्यं । नान्यस्य तत्प्रदेयं स्वयं ग्रहीतव्यमात्मयोग्यमिति ॥ २९ ॥ अर्थ- स्नान के पश्चात् वस्त्र अलंकार और रत्न कलश | आदिको दूसरे के लिये न देवे क्योंकि वह अपने योग्य होते हैं | परिदातुमकतु दत्वांवर भूषिताम्बरभूषणादि तस्यान्यत् । पश्चादन्यत्र शुचौ देशे संभाजिते चतुष्कयुते ॥ ३० ॥
अर्थ- किन्तु अपने दूसरे वस्त्र आभूषण आदि दे सकता है। इसके पश्चात् चौक पूरे हुए अन्य पवित्र स्थानमें ॥ ३० ॥ धातु ततः पश्चात् ग्रीवायामस्य देवदत्तस्य । रोगाय मृत्युहति विद्यां मृत्युञ्जयां सद्यः ॥ ३१ ॥ अर्थ- इस देवदत्तकी गर्दनमें रोग अपमृत्युको नष्ट करनेवाले मृत्युञ्जय नामके यंत्रको बांधे ॥ ३१ ॥ धौतसितवत्रपिहिते पट्टकपीते निवेद्य विधिनैव । अतिसुरभिपुष्पवृष्टि स्नानेन स्नापयेन्मंत्री ॥ ३२ ॥ मुख्य स्नान
अर्थ — मंत्री इस प्रकार उसको श्वेत वस्त्र ढके हुए पीले परंडे पर विधिपूर्वक बैठाकर अत्यंत सुगंधित जलसे निम्नलिखित मंत्र से स्नान करावे ॥ ३२ ॥
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