Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 71
________________ १२६1 ज्वालामालिनी कल्प। अर्थ-यदि तुम यह विद्या अन्यमतावलम्बीको दोगे तो, तुमको, ऋषि, गऊ, और स्त्रीकी हत्याका पाप लगेगा यह कह कर उसको विद्या दे देवे ॥ १५ ॥ छितिजलपवनहताशनयजमानाकाश सोम सूर्यादीन् । ग्रहतारागण सहितान् साक्षीकृत्वा स्फुटं दद्यात् ॥१६॥ दशम परिच्छेद । [१२७ अर्थ-कवियोंको बनानेके शास्त्र में चतुर, जिनेंद्र मगवानके मार्गके योग्य क्रियाओंसे पूर्ण व्रत, समिति, और गुप्तियोंसे रक्षित, मार्गके योग्य क्रियाओं श्री हेलाचार्य मुनि जयवंत हों ॥ १९ ॥ एवं क्षितिजलधिशशांकांबरताराकुलाचलास्तावत् । हेलाचार्योक्तार्थे स्थेयाच्छीज्वालिनीकल्पे ॥ २०॥ अर्थ-इस प्रकार श्री ज्वालामालिनी कल्पमें श्री हेलाचार्य के कहे हुए अर्थको, पृथ्वी, जल, चंद्रमा, आकाश, तारे और कुलाचल, पर्वत स्थिर रक्खें ॥ २० ॥ इतिश्री हेलाचार्य प्रणीत अर्थ में श्रीमत् इन्द्रनमिन मुनि विरचित प्रन्धमें गालामालिनी कल्पकी, प्राच्य विद्य दावि काव्य साहित्य तीर्थाचार्य श्री चन्द्रशेखर शस्रो कृत भाषाटीका में "साधन विधि नामक दशम परिच्छेद समाप्त हुआ ॥०॥ अर्थ-उस समय पृथ्वी, जल, पवन, अग्नि, यजमान, आकाश, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, और तारागण आदिको साक्षीसे उसको विद्या दे देवे ।। १६॥ त्वां मां शिवनद्देवी, हेलाचायं च लोकपालांश्च । साक्षीकृत्य मयं, तुम्यं दत्तेति खलु वाच्यं ॥ १७ ।। अर्थ-तुमको मैंने ज्वालामालिनीदेवी, हेलाचार्य और । लोकपालोंकी साक्षीसे यह विद्या दी उस समय यह कहे ॥१७॥ साधनविधिना देया विधिना शिष्येण साधनाधिना देया। विधिनाग्रहीतविद्या शिष्योऽसौ सिद्ध विद्यः स्यात् ॥ १८ ॥ अर्थ-यह विद्या शिष्थको साधन और उसकी विधि । सहित देनी चाहिये। यह शिष्य विधिपूर्वक विद्या पाकर तुरंत ही विद्याको सिद्ध कर लेगा ॥१८॥ कविकरणसमयमुख्ये जिनपति मार्गो चितक्रियापूर्णः । व्रतसमितिगुप्तिगुप्तो हेलाचार्योंमुनिन्जयति ॥ १९ ॥

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