Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 44
________________ वालामाकिनी कल्प | यह रक्षक पुत्रदायक यंत्र अदर हकार कूट सकल स्वर वेष्टितं सत्प्रणम भू । भूमंडल वेष्टितं समभि लिख्य निवेप्सित नाम तद् वहिः ॥ षोडश सत्कलान्वित वकार वृतं शशि मंडला वृतं स्वरयुत यांत वेष्ट्य मिन बिम्बवृतं स्वरयुक्तयावृतं ॥ ३॥ अर्थ-अ द उ ह क्ष सब स्वर और ओं को मंडलाकार लिख उसके अन्दर नाम लिखे -- फिर एक भूमंडल में सोलह स्वरोंको लिखकर उसके चारों ओर वं बीजका मंडल बनावे ॥ ३ 111 अष्ट दलांबुजं प्रतिदल द्विकलोद्य जमाशका नमः । पाश गजेंद्र बरा होम पदांत सुमंत्र मालिखेत् ॥ जल निधि सप्तकं बहिरपि स्वर युक्त । यकार वेष्टितं पवन त्रितयेन वेष्टितं ॥ ४ ॥ They अर्थ — उसके चारों ओर अष्ट दल कमलका बनाकर प्रत्येक दल में । नमः स्वाहा " ॐ माशूका 348 मंत्र लिखकर उसको चारों ओर सात के मंडल उसके बाहर स्वर सहित य कार और उसके बाहर तीन यं के मंडल हों ॥ ४ ॥ षष्टम परिच्छेद मंत्र मृत्यु जितायं विलिखितं सत्कुकुमाद्यैरिदं । यो से निजकंठबाहुबसने तस्यैह नस्याद् भयं ॥ ..कुठारी भमृत वारिधि नदी चोरापमृत्युद् भवं । रक्षत्या युध शाकिनी ग्रह गणाद बंध्यास्त्रयः पुत्रदं ॥ ५ ॥ अर्थ — जो व्यक्ति इस मृत्युके जीतनेवाले यन्त्रको कुंकुम आदिसे लिखकर कंठ या सुजामें धारण करता है, उसको कुठार, हस्ती, समुद्र, नदी, चोर और अप मृत्युसे होनेवाला भय कभी नहीं होता । यह यन्त्र बंध्या स्त्रीको पुत्र | देनेवाला है। और शस्त्र शाकिनी तथा ग्रह समूहसे रक्षा करता है ॥ ५ वश्य यन्त्र षांत हकार लांत परिवेष्टित नाम वृतं त्रिमूर्तिना । प्रवर किरातनाम वलयं द्विगुणाष्ट दलांबुजं वहिः || षोडश सत्कला लिखित दलेषु शिरो रहिते खरावृतं । हरपि च त्रिमूर्ति परिवेष्टितमजाधिक वर्ण वेष्टितं ।। ६ ।। अर्थ-- एक सोलह दल कमलकी कर्णिकामें स, ह, व, कीं, इन चार बीजोंसे घिरा हुआ नाम लिखकर सोलह दलोंमें बिना शिरवाली. सोला कलाएं लिखकर बाहर भी एक मंडल में सोलहों स्वर और उसके बाहर ह्रीं लिखकर के, क्रों से वेष्टित करे ॥ ६ ॥ TER 156

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