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ज्यालामालिनी कल्प।
जल मिश्र रेतसा तन्निसिंचय सूत्रावृतं कटौ विधृतम् । पुरुष निजानुरक्त करोति पंढ परस्त्रीषु ॥ २६ ॥ (क) ६. अर्थ-उस यंत्रको जलमें मिलाये हुए अपने वीर्यसे सींच कर तागेसे लपेट कर यदि स्त्री अपनी कमरमें बांधै तौ । उस स्त्रीमें अनुरक्त पुरुष दूसरी स्त्रियों के लिये नपुंसक हो जावे ॥२४॥
" कणयवश्य यंत्र ह्रीं मध्ये नाम युग्मं शिखि पुर पुदितं तस्य कोष्टेष वाम। ह्रीं जमे होममन्यत्पुनरपि विनयं हीच मोहे च होर्म ॥२५॥
व ह्रीं तत्कोष्टांतरालेष्ठथ गजवशकद्वीजमन्यतदये। बाहो ही खस्य नानांतरित मथ वहिः धूलिखेत्साध्य नामा ॥२६] -
पीटी परके अंदर ही उसमें अपना और साध्य दोनोंका नाम लिखे, उसके बाहर छह कोण कोठे बनाकर । एकरको छोड़२ कर “ॐ ह्रीं जमे स्वाहा” और “ॐ ह्रीं मोहे
। स्वाहा"-मंत्र लिखे । कोठोंके अंतराल में ह्रीं और कोनोंमें को लिखे। उसके बाहर दूसरे मंडलमें अपने नाम सहित ह्रीं
उसके बाहर दूसरे मंडलमें साध्यके नाम सहित ३ लिखे ॥ २५-२६॥E NEF
कमहिममधुमलयजयावनगौक्षीररोचनागुरुभिः मृगमदसहितेविलिखेत् कणयसुयंत्रं जगदाकृत् ॥ २७ ॥
षष्टम परिच्छेद ।
[ ८३ अर्थ-इस जगत्के वशमें करनेवाले कणय नामके यंत्रको कुकुम, हिम, मधु, मलयज, जौके दूध, गौरोचन, अगर और कस्तूरीसे लिखे ॥ २७॥
शाकिनी भय हरण यंत्र ॥२॥ नाक ॐकारमध्ये पुनरपि वलयं षोडशस्वस्तिकानामाग्नेयं गेहमुद्यन्नवशिखमथ तद्वेष्टितं त्रिकलामिः । दद्याद् बहेः स्य चत्वार्य्यमरपतिपुराण्यं तरालस्थ मंत्रा-: नेतयंत्र सुतं लिखितमपहरेच्छाकिनीमयः प्रभीति ॥२८॥
अर्थ- क्रौं, के बीचमें पअने नामको लिखकर उसके चारों ओर सोलह स्वर लिखे। उसके चारों ओर मंडलाकार स्वस्तिक बीज, ल, ऊ, और द, को लिखकर उसके चारों ओर अग्नि मण्डलमें रं, बीज लिखे। और इसके चारों ओर ही का मण्डल बनाकर उसकी चारों दिशाओं में चार नगर बनाकर उनमें निगम लिखित मंत्र लिखे ॥
पूरब दिशामेंॐ वज्र धरे बंध२ बज पाशेन सर्व मदुष्ट विनायकानां ॐ हवं फट् योगिने देवदत्तं रक्षर स्वाहा ॥
दक्षिणमें-ॐ अमृत धरे घर पर रिशुद्ध ॐ हफट योगिनि देवदत्तं रक्ष२ स्वाहा ॥