Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 52
________________ - - -- - - .. ..... बाोव्यष्ट दलाब्ज मष्ट कमले वन्यच पिंडाष्टकं । पत्रेणान्तरितं लिखेत्स्वरयुगं शेषे च पत्राष्टके ॥ ४१ ॥ अर्थ-एक ऐसा अष्ट दल कमल बनावे। जिसके आठों दलोंके बीच में स्थान छूटा हुआ हो। उसकी कर्णिकामें सल्फ्यू हल्ल्यू और मल्व्यू के बीच में अपना नाम लिखकर बाहरके पत्रोंके अंतरालोंमें पूर्वादिक्रमसे शल्यू यल्यू रम्न्च्यूं घल्यू डम्व्यू खल्ब्यू करव्यू और कम्व्यू लिखकर आठों दलोंमें पूर्वादि क्रमसे अ आ आदि दो २ स्वर लिखे ॥४१॥ स्वर युगलस्याधस्ता च्छब्दं पार्श तथा कुश क्षीं च। - दत्वा तेषां चाधः ह्रीं क्लीं ब्लू सः द्रां ह्रीं क्रमादयात् ॥४२॥ अर्थ-और उन स्वरोंके पश्चात् "हां आं क्रों क्षीं ह्रीं क्लीं ब्लू सः द्रां और द्रीं" बीजोंको क्रमसे लिखे ॥ ४२॥ बाणान्पादलान्तरेषु विलिखे च्छब्दं कर्श चांकुशं। क्षी पत्रान गतं लिखे दथ नमः पर्यंत वामादिना ॥ पत्राग्र स्थित बीज बाण शिखनि शीघ्रं तमाकर्षय । तिष्ट द्विम्मम सत्य वादि वरदे मंत्रेण वेष्ट्य वहिः ॥४३॥ अर्थ-इसके पश्चात् इस यंत्रको बाहर निम्नलिखित मंत्रसे वेष्टित करे। "ॐ हां आक्रों क्षीं ह्रीं क्लीं ब्लू सःद्रां द्रों वाला- मालिनी देवि शीघ्रं देवदत्तमाकर्षय २ तिष्ठ २ मम सत्य वादि वरदे नमः" ॥४३॥ परम देव ग्रह यन्त्र बाह्ये ह्रीं शिरसावृतं त्रिरथ तद्र खाप्रयोन्या कुते । मध्ये क्लीं उपरिस्थ कोण युगले द्रां द्रींमधो ब्लूलिखेत् ॥ बाह्ये दिक्षु विदिक्षु रान्त धरणी बीजान्वितै द्र पुरं। तद्वाह्ये लिख दिग्वि दिगातल कारांसन्वितं वारिधिः ॥४४॥ अर्थ-बाहर ह्रीं की तीन रेखाओंसे घेरकर मध्यमें की को लिखे । क्लीं के ऊपर दो कोनोंमें द्रां द्रीं और नीचे ब्लें बीजको लिखे। उसके बाहर अष्टदल कमलका इंद्रपुर बनाकर उसमें हीक्लीं बीजको लिखे। उसके आठों दिशाओं में ब्लं लिखे ॥४५॥ देव्या ज्वालामालिन्योक्तमिदं परम देव ग्रह यंत्र । पुण्यार्के शुभतंत्रबिलिख्य भूजें पदे चापि ॥४६॥ अर्थ-देवी ज्वालामालिनीके कहे हुए इस परमदेव ग्रह यंत्रको पुष्य नक्षत्र में भोजपत्र पर सुगन्धित और पवित्र वस्तुओंसे लिखे ॥ ४६॥ वश्य हवन ।। शिखि मद्देवी हृदयोऽपहृदय मंत्रेण पूजितं सततं । जपितं हुतं च सकलं स्त्रीनृपरिपुभूतवश्यकरं ॥ ४६॥ ।

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