Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 26
________________ ३६ ] ज्वालामाखिनी कल्प शब्द कशांकुश चरण हैंय नागाचोदिता यथा यांति बुधैः । दिव्या दिव्याः सर्वे नृत्यंति तथैव संबोधनतः ॥ ५५ ॥ अर्थ - जिस प्रकार घोड़े और हाथी, शब्द, शकोड़े, अंकुश और एडसे आगे चलते हैं, उसी प्रकार पंडितोंके शब्द पर दिव्य और अदिव्य सभी ग्रह नाचते हैं ।। ५५ ।। वाक् तीक्ष्णै र्व्वर मन्त्रैर्मित्वा दुष्टग्रहस्य हृदयं कर्णौ । चिन्तयति बुध स्तोधं करोतु भुवि ।। ५६ ।। Rat अर्थ - पंडित पुरुष तीक्ष्ण बाणोंवाले उत्तम मंत्रोंसे दुष्टग्रहके हृदय और कानोंको छेदकर जो जो सोचता है। संसार में वही वही होता है ॥ ५६ ॥ बीजाक्षर ज्ञानका महत्व तत्कर्म नात्र कथितं कथित्र शास्त्रेषु गारुडे सकलं । तद्भेदमाप्य मंत्री यद्वक्ति पदं तदेव मन्त्रः स्यात् ॥ ५७ ॥ अर्थ- जिस भेदको पाकर मन्त्री जो कुछ कहता वही मन्त्र बन जाता है । वह कर्म यहां नहीं बतलाया गया बल्कि उसका कथन पूर्णरूपसे गारुड शास्त्रमें किया गया है ॥ ५७ ॥ sati कुर्यान्मंत्री कथयतु तदात्म पार्श्व जिनाय । पात्रं निश मय्य वचो यक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥५८॥ तृतीय परिच्छेद । [ ३७ अर्थमंत्री उसको जानकर जो जो करना चाहिये वह सब कर करके श्री पार्श्वनाथ भगवानके अर्पण कर दे। ऐसे मंत्रीके वचनको जो सुनेगा उसके लिये वही मंत्र हो जावेगा । छेदन दहन प्रेषण भेदन ताडन सुबंध मांध मन्यद्वा । पार्श्वजिनाय तदुक्त्वा यद्वक्ति पदं मंत्र स्यात् ॥ ५९ ॥ अर्थ - वह पुरुष छेदना, जलाना, भेदना, काटना, मारना और बांधना आदि तथा अन्य भी श्री पार्श्वनाथ भगवान् के लिये कह कर जो पद कहता है, वही मंत्र हो जाता है। दिव्य मदिव्यं साध्यमसाध्यं संबोध्य मप्य संबोध्यं । बीज मबीजम् ज्ञात्वा यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥ ६०॥ अर्थ- वह दिव्य और अदिव्य साध्य और असाध्य कहने योग्य और न कहने योग्य तथा बीज और अबीजको बिना जाने हुए भी जो पढ़ कहता है, वही मंत्र होजाता है । भृकुटि पुट रक्त लोचन भयं कराह प्रहास हा हा शब्दः । मंत्र पदं प्रपन्नपि यक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥ ६१ ॥ अर्थ -- वह भौं चढ़ाकर लाल नेत्र किये हुए भयंकर अट्टहास करता हुआ हा हा शब्द करता हुआ अथवा मन्त्र यदको पढ़ता हुआ भी जो कुछ कहता है, वह मन्त्र बन जाता है ॥ ६१ ॥

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