Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 29
________________ नाना फ जल प्रज्वल २ हुँ हुँ दद माम् धूमांधकारिणि शीघ्रं एहि अमुकं वशं कुरु । यह वशमें करनेके लिये देवीका मंत्र है ॥ ७४ ॥ अज पिण्ड देवता पंच बाण निज तत्व पंचक निरोधैः । स्वेष्ट निरोध पदैः सह जयति समस्त ग्रहान्मंत्री ॥ ७५ ॥ अर्थ - अजपिण्ड देवता पंचबाण स्वतत्व पंचक निरोध और इष्ट निशेध पदोंसे अर्थात् "क्षल्यू ज्वालामालिनि द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः क्षां क्षीं क्षू क्षौं क्षः हाः सर्व दुष्ट ग्रहान् स्तंभयर ठः ठः हां आं क्रों क्षीं ज्वालामालिन्याज्ञापयतिहुँ फट् घे थे।" इस मंत्र से मंत्री सर्व ग्रहों को जीतता है ॥ ७५ ॥ कुछ बीजों का वर्णन स्वाहा स्वधा च वडपि संवौषट् हूं तथैव घे फट् क्रमशः । शांतिक पौष्टिक वा कर्षण विद्वेष सारणोच्चाटन कृत् ॥७६॥ अर्थ- स्वाहा- शांति करनेवाला, स्वधा - पुष्टि करनेवाला, वषट्-वशीकरण करनेवाला, संवौषट् आकर्षण करनेाला हूँविद्वेषण करनेवाला, वे-मारनेवाला और फट् उच्चाटन करनेवाला हैं ।। ७६ ।। विनयो ज्वालामालिन्युपेत नव तत्व युत नमस्कारः । एषा प्रदान वद्य ज्ञानमा ज्वालिनी कल्पे ॥ ७७ ॥ तृतीय पारछइ । अर्थ-ज्वालामालिनीको विनय और नव तत्ब सहित ही नमस्कार ही देनेकी विद्या है यह ज्वालामालिनी कल्पसे जानना चाहिये || ७७ ॥ 10% विनयादि देवता पिंडतत्वनवकं निरोध शून्य युतं । विश्या कृष्णायुच्चाटन मारण बीजानि मणिविद्या ॥ ७८ ॥ अर्थ - विनयादि देवता पिण्ड नव तत्व निरोध और शून्य सहित वशीकरण आकर्षण, उच्चाटन मारण मा के बीजोंकी विद्या होती है। अर्थात्- "ज्वालामालिनि न्यू हव्यू न्यू यू म्यू क्ष हा वषट् यू । ॐ ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ह्रीं आं ह वषट घे घे " इस मन्त्रको वशीकरणउच्चाटन और मारण आदि बीजोंसे युक्त करके भोज पत्रपर लिखकर उक्त लिखित मंत्रकी सत्ताईसकी माला बनाकर उसे प्रातः दो प्रहर तथा सायंकालके समय जपनेसे इच्छित कार्य सिद्ध होते हैं ॥ ७८ ॥ हृदयोपहृदय बीजं कनिष्ठिकाद्यंगुलिषु विन्यसेत । तस्योपर्यो ज्वालिनि जनवश्यं कुरु युगं वषट तत्वमिदं ॥ ७९ ॥ अर्थ- हृदय और उपहृदयके बीजको कनिष्टिका आदि अंगुलियों में रखकर इस मन्त्रका ध्यान करे ।। ७९ ।। “ॐ ज्वालामालिनि मम सर्वजन वश्यं कुरुर वषट् । यह मन्त्र है। 12 यू

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