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मनकल्प |
चोद्यं वांछति तत्तत्कुरुते द्विष द्विषद्विदं वीजं । तस्माद्वीजं ध्यात्वा यद्वक्ति पदं तदेव मन्त्रः स्यात् ॥ ६२॥
अर्थ- वह जिस जिस कार्यको करना चाहता है, शत्रुको जाननेवाला बीज वही २ कर देता है, इस वास्ते बीजका ध्यान करके जो पद कहा जाता है, वही मन्त्र हो जाता है ॥ ६२ ॥
अति बहला ज्ञान महांधकार मध्ये परिभ्रमन्मंत्री । लब्धपदेश दीपं यद्वक्ति पदं तदेव मन्त्रः स्यात् ॥ ६३ ॥
अर्थ - मंत्री पुरुष अत्यन्त गहन अज्ञानरूपी महा अन्धकार बीचमें घूमता हुआ भी उपदेश रूपी दीपकको पाकर जो कहता है, वही मंत्र हो जाता है ॥ ६३ ॥
न पठतु माला मंत्र देवी साधयतु नैव विधि नेह । श्री ज्वालिनी मतज्ञो यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥६४॥
अर्थ न तौ मालाके ही मन्त्रका पाठ करे और न यहां देवीकी ही विधिपूर्वक साधना करे किंतु श्री ज्वालामालिनी देवीके मतको जाननेवाला पुरुष जो कहता है, वही मन्त्र हो जाता है ॥ ६४ ॥
देव्यपनीयध्यानानुष्ठानहोम रहितोऽपि । श्रीज्वालिनी मतज्ञो यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥ ६५ ॥
नाष
०५।
अर्थ-देवीकी पूजा, जाप, ध्यान, अनुष्ठान और होमसे रहित होने पर भी श्री ज्वालामालिनीदेवीके सिद्धांतको जाननेवाला जो पद कहता है। वही मंत्र हो जाता है ।। ६५ ॥
विनयं पिंडं देवी स्वपंच तत्वं निरोध सहितं च । ज्ञात्वोपदेश गर्भं यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥ ६६ ॥
अर्थ - विनय पिंड देवी स्वपंच तत्वको निरोध सहित जानकर जो पद कहता है, वही मंत्र हो जाता है। अर्थात् निम्नलिखित मंत्र सर्वत्र काम दे सकता है।
“ ॐक्ष्म्न्यू ज्वालामालिनी क्षां क्षीं क्षू क्षों क्षं क्षः हा दुष्टग्रहान् स्तंभय २ ठं ठं हां आं क्रों क्षीं ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुँ फट् घे थे। "
उपदेशान्मंत्र गति मंत्र रुपदेशवर्जितैः किं क्रियते । मंत्र ज्वालामालिन्य दिकृतकन्पोदितः सत्यः || ६७ ॥
अर्थ - मन्त्र बिना उपदेशके नहीं रह सकते और बिना उपदेश पाये कुछ किया भी नहीं जा सकता किंतु ज्वालामालिनी कल्पके बतलाये हुए मन्त्र पूर्ण रूपमें सत्य हैं ॥६७॥
कर्णाकर्ण प्राप्तं मंत्र प्रकटं न पुस्तके विलिखेत् ।
स च लभ्यते गुरु मुखाद्यत्कः श्री ज्वालिनी कल्पे ॥ ६८ ॥ अर्थ - मन्त्र कर्णसे लेकर कर्णमें ही रक्खे, पुस्तकमें न