Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ५०। ज्वाला कल्प कुण्डे प्रपूरयेतां कमल्लिकायां पचेच पुतलिकां । पत्र कटि परिघटयेत्पटं तापयेत्कुण्डं ॥ २९ ॥ अर्थ-- फिर कुण्डमें कमल्लिकाको डालकर उस पुतलीको पकावे और पत्तेको कढाही में घोटे तथा वस्त्रको कुण्डमें गरम करे । सतत मथ होम मंत्र प्रपठन्निति निग्रहेषु विहतेषु । दाधोऽस्मि मारितोऽहं हतोऽहमिति रोदिति कठोरं ॥ ३० ॥ अर्थ — इसके पश्चात् निरन्तर होमके मंत्र पढ़ता हुआ इस प्रकार निग्रह किये जानेपर ग्रह "मैं जला, खूब चोट लगती है, मैं मरा" कहकर खूब रोता है 1 प्रवेग सप्तदिवसान् त्रीन्वा लोके प्रसिद्ध लाभार्थं । प्रविनत ग्रहंडला द्विनास्वेच्छाया मंत्री ॥ ३१ ॥ अर्थ - पहिले सात दिन या ठीक तीन दिन लोकमें प्रसिद्ध और लाभ पानेके लिये मंत्री पुरुष ग्रहको खूब नचावे ॥ ३१ ॥ पञ्चात्सप्तमदिवसे तृतीय दिवसे दिवा महत्यस्मिन् । fafe नैव स तोभद्र मंडले नर्तयित्वा तं ॥ ३२ ॥ अर्थ- फिर सातवें दिन या तीसरे दिन उसको सर्वतोभद्र मंडल में विधिपूत्र के नचाकर । चतुर्थ परिच्छेद । कृष्णाष्टम्या मथ तद्भूत तिथौ वा कुजांशाभ्युदये । दुष्ट ग्रहमशुभग्रह लग्ने प्रविसज्ज' ये तज्ज्ञः ॥ ३३ ॥ | ६१ अर्थ — कृष्णपक्षकी अष्टमीको या उस भूतकी तिथिको अथवा मंगलके निकलने पर उस दुष्ट ग्रहको अशुभ ग्रह और अशुभ में छोड़े || ३३ ॥ समय मण्डल विलाष्ट दल पद्म' विलिख वाहेस्य पंच वर्णेन । चूर्णेन चतुः कोणं विस्तीर्ण मंडल विलिखेत् ॥ ३४ ॥ 43.P. अर्थ-- फिर बडे आठ दलवाले कमलको लिख उस पंच वर्णके चूर्ण से चौकोर बडा मंडल बनावे ॥ ३४ ॥ हरिण वराह तुरं गमगजवृष महिष रममार्जार मुखं । फल वरद हंस युक्त सालंकार सुलक्षण नारीणां ॥ ३५ ॥ अर्थ — फिर, हरिण, वराह, तुरंग, गज, वृष, महिष, करभ (ऊंट), और मार्जारके मुख, तथा फल, और वरको देनेवाले हंससे युक्त अलंकार सहित स्त्रियोंके सुलक्षण ||||३५|| पूर्वाद्यष्ट सु पत्रेष्वनुक्रमात्सुन्दरं लिखेद्रपं । तन्मध्ये षट्कोणं शिखि भवनं शिखिमालिख्य ॥ ३६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101