Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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ज्वालामालिनी कल्प। चतुर्थ परिच्छेदः
सामान्यमंडल एकतरौ प्रेतगृहे चतुष्पदे ग्राम मध्ये देशे वा।। नगर वहि भूभागे मंडल मावर्त ये प्राज्ञः ॥१॥ ___ अर्थ-बुद्धिमान् एक वृक्षके नीचे प्रेतके घर (स्मशान)में चौराहे पर ग्रामके ठीक बीचमें या नगरके बाहर मंडल बनावे ॥१॥ ईषानाभि मुखः प्रपतितजलशल्यरहित समभूमौ । हस्ताष्टक प्रमाणं नवखंडं मंडलं प्रवरं ॥२॥
अर्थ-उसका मुख ईशान कोणकी ओर हो। वह मंडल गड्डे जल तथा कंटकरहिन समभूमिमें आठ हाथकी जगहमें बनाया जावे ॥२॥ वर पंचवर्ण चूर्णैः द्वारचतुष्कान्चितं लिखेद्विपुलं । नाना केतु पताका दर्पण घंटान्चितं कुर्यात् ॥ ३॥
अर्थ—उसको पांचों रंगोंके चूर्गों से च्यार द्वारों वाला और उसको अनेक प्रकारकी ध्वजा पताका दर्पण और घंटोंसे सजा देवे ॥३॥
चतुर्थ परिच्छेद । अश्वत्थपत्र विरचित तोरण तत्पुरुष मंडपोपेतं । सकल विदिक्षुनिवेषित मुषलाग्रन्यस्त पूर्णघटं ॥४॥
अर्थ-उसका द्वार पुरुषका प्रवेश करने योग्य बनाकर पीपलका तोरण लगावे और उसकी सब दिशा विदिशाओंमें मुशलके समीप जलसे भरे हुए घड़ोंको रख दे ॥४॥ तस्मिन्प्रच्याधष्ट सुकोठेष्विन्द्राग्निमृत्यु नेऋत् वरुणान् । मारुत धन देशानान् लक्षण युक्तान् लिखेन्मतिमान् ॥५॥
अर्थ-बुद्धिमान् पुरुष उसके पूरब आदि आठ कोठोंमें इंद्र, अग्नि, यम, नैऋत, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देवोंको सब लक्षणों युक्त करके लिखे ॥५॥
शक्र पीतं वन्हि वन्हि निभं मृत्युराज मति कृष्णं । हरितं नैऋत मपरं शशि प्रमं वायु मसितांगं ॥६॥
अर्थ-ईद्रको पीला, आग्नका आमक समान, यमका अत्यंत कृष्ण, नैऋतको हरा, वरुणको चंद्रमाके समान, वायुको मटियाला (असित-जो सफेद न हो)॥६॥ धनदं समस्त वर्ण सित मीशानं क्रमेण सर्वान्विलिखेत । गज मेष महिष शव मकरोद्यन्मृग तुरंग बृष बाहान् ॥७॥ ___ अर्थ-कुबेरको सब रंगोंका और ईशानदेवको सफेद बनावे और इनके बाहन क्रमसे-हाथी, मैंढा, भैंसा, शव, मकर, दौडता हुआ मृग, घोड़ा और बैल बनावे ॥ ७॥

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