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1280-11 साधारण विधि वामकर मंत्रमंत्रित निजवेदने नातनोतु जन वश्यं । भीमकरण दश त्रासनानि होमं च विदधातुः ॥ ८॥
अर्थ-मंत्री पुरुष बाएं हाथसे मन्त्रको जाप कर अपने मुखसे उसको पढ़ता जावे और दाहिने हाथसे दश प्रकारके पूर्वोक्त त्रसन और होम करे ॥ ८० ॥
मंत्रजपहोमनियमध्यानविधि मा करोतु मंत्रीति । यद्यप्यत्रसयुक्त' तथापि सन्मंत्र साधन जहातु ॥ ८१॥
अर्थ-मंत्रीको चाहिये कि वह मंत्र जप होम नियम और ध्यानकी विधिको पूर्ण रूपसे करे । यद्यपि उसका यहां विधान साधारण है। तथापि न करनेसे वही मंत्र के साधनको छोड़ देती है ।। ८१॥ एक स्तावद्वन्हिः पुनरपिपवनाहतो न कुर्यातकिम् । एक स्तावन्मत्रो जप होम युतास्य किमसाध्यं ॥ ८२ ॥
अर्थ-यद्यपि अग्नि एक होती है। तयापि उसको हवासे न ऊपका जाने पर वह क्या नहीं करती। उसी प्रकार मंत्र एक ही होता है। तब भी जप और हवनसे युक्त होने पर उसके लिये क्या असाध्य है ? ॥ ८२॥
तृतीय परिच्छेछ ।
४५ तस्मान्मंत्राराधनविधि विधिमिहविधिपूर्वकं करोतु बुधः । नित्य मनालस्य मना यदीष्टसिद्धिं समीपोत ॥ ८३ ।।
अर्थ-इस लिये पंडित पुरुष यदि इष्ट सिद्धि करनी चाहता हो तो मनसे आलस्यको दूर करके मंत्राराधनविधिपूर्वक इष्ट सिद्धि करे ॥ ८३॥ इतिश्री हेलाचार्य प्रणोत अर्थमें श्रीमद इन्द्रनन्दि मुनि विरचित अन्धमें ज्वालामालिनी कल्पकी काव्य साहित्य तीर्थाचार्य प्राच्य विद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्रो कृत
भाषाटीकामें "द्वादशाबोजाक्षर विधान" नामक .. का तृतीय परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ३॥