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अथ-- “ ॐ झन्यू ज्वालामालिनि ह्रीं क्लीं ब्लूं ड्री हाजः " यह मुष्टिग्रहण मंत्र है। इसकी मुष्टिमुद्रा है ॥ ४२ ॥ पिंडेन विना हा फट् घे घे मंत्रेण तत्र चान्यस्मिन् । कुर्याद्ग्रह संक्रामं मुष्टिविमोक्षेण सन्मंत्री ॥ ४३ ॥
अर्थ - " हा फट् घे वे । " यह मुष्टि विमोक्षण मंत्र । इससे भी ग्रह दूर हो जाते हैं ॥ ४३ ॥
पिण्डः स एव विनयादिक स्वपंच तत्वान्वितः सनिरोधः । सर्वेषां ग्रहनानां कुरु सन्निग्रहां स्तथा हृीं फट् घे वे ॥४४॥
"ॐ झल्यू ज्वालामालिनि ह्रीं क्लीं ब्लू द्रां द्रीं झां झीं श्रं झौं ः हाः सर्व दुष्ट ग्रहान् स्तंभय स्तंभय ताडय २ अक्षीणि स्फोटय २ प्रेषय२ भेदय२ हा हा हाः आं कों क्षीं ज्वालामालिन्याज्ञापयति हुँ फट् घे घे । "
यह दुष्ट निग्रह कर्म मंत्र होने पर दुष्ट मुद्रावाला तथा ईसित कर्ममंत्र होनेपर दुष्ट तर्जनी मुद्रावाला होता
॥ ४४ ॥
ॐ कान्त पिण्ड पंच खर युत तल रेफ सहित कपरं च । हा फट् ये सर्व्व ग्रह गल भंगं कुरु युगं घे घे ॥ ४५ ॥
तृतीय परिच्छेद ।
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अर्थ — ॐ खल्यू वालामालिनि ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं खां खीं खौं ः हा फट् घे वे सर्वेषां ग्रहाणां गल मंगरुर हां कों क्षीं ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुँ फट् घेघे । यह गलभंग मंत्र है, इसकी खलिन मुद्रा है || ४५ ॥ भक्त्यादि चान्त पिण्ड : पंच कला रेफ युक्त चांत निरोधः । सर्वेषां ग्रह नाम्ना मंत्राणि छिंद फट् फट् घे घे ॥ ४६ ॥
अर्थ — ॐ छन् ज्ञालामालिनि ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ह्रीं कूं छौं छः हाः सर्वेषां ग्रह नाना मंत्राणि छिंद्र छिंद हां aat क्षी ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुँ फट् वे वे ॥ K यह अंत्र छेदन मंत्र है, इसकी अंत्र छेदन मुद्रा है ॥४६॥
भक्तिसहितेन्दुपिण्डः ब्लींहाः सर्व ग्रहांस्तु पाषाणैः । ताड ताडय भूमौ द्विपातय हूं युगं च फट् घे घे ॥४७॥
अर्थ- ॐ ज्वालामालिनि ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ली हा सर्व दुष्ट ग्रहान् तडित्पाषाणे: ताडय २ भूमौ पातय २ हां आं कों क्षीं ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुँ फट् घे घे ॥
यह ग्रहोंका हनन मंत्र है, इसकी विद्युत् मुद्रा है ॥४७॥ fareer ra पिंडस्तदीयमयतत्वपंचकं निरोधः । सर्वेषां ग्रहनानां कुरु सर्व निग्रहां सु फट् घे घे ॥ ४८ ॥ अर्थ - ॐ क्यू ज्वालामालिनि ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं