Book Title: Jwala Malini Kalpa
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 21
________________ मानी कल्प । श्रीमच्छन्दकशांकुशं हरियुतं कूटं स बिन्दु लिखेत् । बाणान् द्वादशपिण्ड मातृ सहितान् शून्यैश्चतुर्भिर्युतान् ॥ क्षत्रिं वज्र सुपंजरांतरगतो दुष्टैरलंघ्यो भवेत् । 我 शाकिन्यादि महाग्रहान् वितथान् रौद्रान् समुच्चाटयेत् ॥२२॥ २६ अर्थ-उस समय आगे आनेवाले “ श्रीमत आं कौई वां द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः क्षन्यू हव्यू यू मल्यू यू यू यू म्यू कम्यू क्षीं क्षू क्षः " मंत्र बज्रमय पिंजरेके बीच में बैठा हुआ मंत्री दुष्ट ग्रहोंसे अलंघ्य होकर शाकिनी और रौद्र महा ग्रहोंको शीघ्र ही दूर भगा देता है ॥ २२ ॥ पात्र मुक्त्वा मंत्री बली हि मत्वा गृहाः प्रयान्ति यदि । तत्राप्याशा बंधं कुर्यादित्थं सनापैति ॥ २३ ॥ अर्थ – यदि मंत्रीको बली जानकर कोई ग्रह आवे तौ दोशाबंध करने से वह दूर हो जाता है। ॐ ह्रां ह्रीं ह्र हः ज्वालिनी पादौ च जघनमुदरं वदनं । शीर्ष रक्ष द्वय होमांतम् परगात्र पंचके संस्थाप्य ॥ २४ ॥ अर्थ – “ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः ज्वालामालिनी पात्रस्य पादौ जघनं उदरं वदनं शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा " इत्यादि ऊपर के अनुसार इस मंत्र को अपने पांचों अंगोंमें होमके अन्त तकस्थापित करके । | २७. तृतीय परिच्छेद । यह निग्रह निधान क्ष ह भ म य र ऊकांत पूछकार पूर्णेन्दुयुक्त निर्विष बीजैः । बिंदूर्द्ध रेफ सहितैर्म्मल वरयूँ संयुतं द्विषद्विबीजैः ॥ २५ ॥ अर्थ-क्ष ह भ म य र उख छकार और पूर्णचंद्र (ठ) सहित निर्विष (क) बीजोंसे बिन्दु ऊर्ध्व रेफ सहित मलबर और यूं से युक्त शत्रुओं को नष्ट करनेवाले बीजोंसे मुक्त करके, स्तम्भन स्तोभन ताडन मांध्य प्रेषणं दहनभेदनं बंधाः ।" ग्रीवा भंग गात्र छेदन हननमाप्यायनं ग्रहाणां कुर्यात् ॥ २६ ॥ अर्थ- ग्रहोंका स्तम्भन, कम करना (स्थिर करके खैंचना) - मारना, अंधा करना, जलाना, भेदना, बांधना, ग्रीवाभंग, अंग छेदना, मारण तथा दूरीकरण करे ॥ २६ ॥ हास्यान्निरोधशून्यं स्वरो द्वितीय चतुर्थ षष्टौ च । ॐ कारो विन्दुयुतो विसर्जनीयश्च पंचकलाः ॥ २७ ॥ ॐ कूट पिंड पश्च स्वर संयुत कूट पंचकं स निरोधं । दुष्ट ग्रहांस्तथा द्विस्तम्भ मंत्र इति फट् २ घे घे ॥ २८ ।। अर्थात् "ॐ न्यू ज्वालामालिनि, ह्रीं क्लीं, ब्लूद्रां, द्रीं, क्षां क्षीं, क्षू, क्षौं, क्षः, हाः, दुष्ट ग्रहान् स्तम्भय २: हां, आं, क्रों, क्षीं, ज्वालामालिन्याज्ञापयति हुँ फट् घे घे ॥""

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