Book Title: Jodhpur Hastlikhit Granthoka Suchipatra Vol 01
Author(s): Seva Mandir Ravti
Publisher: Seva Mandir Ravti

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अन्त० = www.kobatirth.org अन्तर्वाच्य ( Intervenient ) वाचना में पूरक रूप से बाह्य वस्तु का समावेश कर परिवर्द्धन करना प्रन्तर्वाच्य है । "प्रक्षिप्त " तो मूल पाठ का भाग ही बना दिया जाता है - अन्तर्वाच्य उससे भिन्न है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनु० = अनुवाद (Translation) ग्रन्थ की मूल भाषा को न जानने वालों के लिए भाषान्तर द्वारा ग्रन्थ के शुद्ध स्वरूप का उनकी भाषा में प्रस्तुतिकरण अनुवाद कहलाता है । व्याख्या = (Explanation) मूल कृति के मर्म को आसानी से समझा देने वाली ग्रन्थ पद्धति की सामान्य संज्ञा व्याख्या है । शास्त्रीय दृष्टि से इसके 6 अंग होते है:-संहिता पदच्छेद, पदार्थ, पदविग्रह, चालना और प्रत्यावस्था । विo = विवरण (Narration) विवरण शब्द सामान्य न कि विशेष पारिभाषिक अर्थ में ही प्रचलित है। अलबत्ता वृत्ति के लिए इसका प्रयोग अधिक होता है । यद्यपि उपरोक्त परिभाषायें दी गई हैं तो भी वे कोई कठोर निश्चयात्मक नहीं हैं एक ग्रन्थ एक से अधिक परिभाषायों के अन्तर्गत आा सकता है । अतः हमने भी ग्रन्थकार ने जैसा अपने ग्रन्थ को कहा है वैसा ही मान लिया है। स्तम्भ 6- विषय संकेत --- यद्यपि मोटे रूप में विभागानुसार विषय संकेत हो जाता है तो भी इस स्तम्भ में ग्रन्थ की विषय वस्तु का प्रति संक्षिप्ततम सारांश परिचय रूप में दिया है जो पाठकों के लिए लाभप्रद सिद्ध होगा । स्तम्भ 7 - भाषा: -- ग्रन्थ प्राकृत, संस्कृत प्रपभ्रंश आदि जिस भाषा में लिखा गया है उस भाषा को या तो प्रथम अक्षर से दर्शाया गया है और नहीं तो भाषा का पूरा नाम लिख दिया है । इस प्रकार -- प्रा० = प्राकृत सं० = संस्कृत डिo = डिङ्गल हि० = हिन्दी गु० = - गुजराती प्र० = प्रपत्र श जहाँ ग्रन्थ (मूल + वृत्ति प्रादि) एक से अधिक भाषा में है वहाँ उन सभी भाषाओंों को बता दिया है। मिश्रित होने से कई बार ग्रन्थ की भाषा क्या है इस बारे में मतभेद भी हो सकता है जैसे 'जयतिहुप्ररण' स्तोत्र को कई लोग प्राकृत की रचना कहते हैं तो कई उसे अपभ्रंश की। जिन ग्रन्थों की भाषा को हमने 'मारु गुर्जर' की संज्ञा दी है उस बारे में स्पष्टीकरण करना चाहेंगे । For Private and Personal Use Only |रा० = राजस्थानी मा० = = मारुगुर्जर के बोधक हैं । पश्चिमी राजस्थान व गुजरात इस भू-भाग की भाषा विक्रम की लगभग 18वीं शताब्दी तक प्रायः एक सी ही रही है और उसमें विपुल साहित्य रचा गया है। अपभ्रंश भाषा के काल के बाद, प्रदेश की इस भाषा को क्या नाम दिया जावे इस बारे में विद्वान एक मत नहीं है। चूंकि विगत दो ढाई शताब्दियों से राजस्थानी व

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