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मू= मूल (Bare Text)
अर्थात् ग्रन्थ का मूल पाठ मात्र है ।
fao = fag'fii (Explication)
जो निश्चित रूप से समग्रता व अधिकता को लिये हवे, सूत्र में अभिहित, अन्तनिहित सकेतित या स्थित हैं उन जीव अजीव प्रादि विषयों के अर्थों को भली प्रकार परस्पर वाच्य वाचक सम्बन्ध पूर्वक प्रकट करने के उपाय को (युक्ति योजना या घटना को) नियुक्ति कहते हैं ।
यद्यपि सूत्र में अर्थ बीज रूप में वर्तमान हैं तो भी शिष्यों के लिए उसक | रहस्योद्घाटन या विश्लेषगा करना द्विभाषण नहीं है; तथापि नियुक्तिकार अधिकारक विद्वान हैं । सभी नियुक्तियाँ प्राकृत भाषा की पथ मय रचनाये हैं । निक्षेप. उपोद्घात व सूत्रस्पशिक ये तीन इसके प्रकार हैं। नियुक्ति निरुक्त से भिन्न होती है और कई माचार्य इसके दो भेद भी करते हैं---स्पर्श निर्यक्ति व निश्चयेन उक्ति ।
HT0 = 3164 (Treatise)
मूल ग्रन्थ पर वह विशद रचना जिसमें प्रायः भाष्यकार का स्वयं का भी अर्थपूर्ण योगदान होता है भाष्य कहलाता है।
यह प्रायः पद्य शैली में लिखा जाता है और मूल ग्रन्थ की संपूर्ण विषय वस्तु की विभिन्न दृष्टियों से समीक्षा भी की जाती है।
चू0 = चूणि (Exegesis)
मूल सूत्र की जो गद्य शैली व सरल भाषा में विस्तार सहित अध्येता को हृदयंगम कराने के लिये अभिव्यक्ति की जाती है उसे चूर्णी (या चूणि) कहते हैं ।
चूर्ण धातु 'पेषण' के अर्थ में है अर्थात् सूत्रों का चूरा करके सुबाह्य व सुपाच्य बना दिया जाता है ।
वृ० = वृत्ति (Exposition)
वृत्ति एक वह उपयोगी व महत्त्वपूर्ण विवेचन है जिसके माध्यम से शब्दार्थ सह अनुगामिनी व्याख्या द्वारा मूल लेखक का संपूर्ण अभिनाय निष्ठापूर्वक हेतू नय, शंकासमाधान प्रादि सम्मेत स्पष्ट कर दिया जाता है।
यद्यपि वृत्ति व चूणि शब्द का प्रयोग एक दूसरे के लिये कर दिया जाता है तो भी सामान्य पाठक के लिये यह सूचना है कि समस्त चूणि साहित्य (अल्प संस्कृत मिश्रित) प्राकृत भाषा में ही उपलब्ध है जबकि मारी प्रचलित वृत्तियां संस्कृत में हैं।
दी0=दीपिका (Illuminant)
यथानाम दीपक की तरह मूल प्रत्य पर लघ प्रकाश डालने वाली रचना को दीपिका कहते हैं ।
प्रायः करके वृत्ति की पश्चात्वर्ती होती है और भावानुवाद द्वारा उसमें रही हुई जटिलता का यह निराकरण व सरलीकरण भी करती है ।
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