Book Title: Jodhpur Hastlikhit Granthoka Suchipatra Vol 01
Author(s): Seva Mandir Ravti
Publisher: Seva Mandir Ravti

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूचीपत्र के स्तम्भों में दी गई सूचना को मुख्यतः दो भागों में बांट सकते है--कुछ स्तम्भों की बीगत तो उस ग्रन्थ से सम्बन्ध रखती है और कुछ स्तम्भों की बीगत उस प्रति विशेष से ही सम्बन्धित है। अब हम प्रत्येक स्तम्भ का थोड़ा विश्लेषण करना उपयुक्त समझते हैं स्तम्भ 1-क्रमांक : इसमें हमने विभागीय, या जहाँ है वहाँ उपविभागीय क्रमांक दिया है। सामान्य अनुक्रमांक सारे ग्रंथ तक एक ही चालू रखा जा सकता था परन्तु हमारी गय में विभागीय संख्या का महत्व अधिक है और मुद्रण आदि में सुविधाजनक भी है । वैसे विषय सूची में कुल प्रतियों की संख्या का योग आ ही गया है। साधारणतया हर प्रति की अलग प्रविष्टि करके विभागीय क्रमांक दे दिया गया है। परन्तु कई ग्रंथों की अर्वाचीन प्रतियाँ जो अति सामान्य हैं और पाठ भेद प्रादि दृष्टियों से महत्वहीन हैं उनकी प्रविष्टि एक साथ कर दी गई है लेकिन वहां भी जितनी प्रतियां हैं उतने क्रमांक दे दिये है । (देखिये पृष्ठ 170 सिंदूर प्रकर सात प्रतियें एक साथ में क्रमांक 120! से 1208) । इस तरह सूची पत्र को अनावश्यक रूप से बड़ा नहीं होने दिया है। इसके विपरीत जिस संयुक्त प्रति में एक से अधिक उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं उन सभी ग्रन्थों की अलग अलग प्रविष्टियां विभागानुसार अकारादिक्रम से बीगतवार यथा-स्थान कर दी है और क्रमांक दे दिये है। और चुकि ऐसी प्रत्येक प्रविष्टि में पन्नों की संख्या पूरी प्रति की ही लिखी है, जो भ्रमोत्पादक न हो जाए इसलिये पन्नों की संख्या पर* तारे का चिन्ह लगा दिया है। तथा जहाँ अावश्यक समझा गया है वहाँ संयुक्त प्रति के प्रथम ग्रन्य की प्रविष्टि देखने की सूचना कर दी गई है । इसके अतिरिक्त कई प्रतियाँ विशेषतः स्तवन मंत्रादि एक दो पन्नों के प्रति लघु ग्रन्थ होते हैं । तथा प्रत्येक भण्डार में कई सारे पन्ने स्फुट और त्रुटक भी होते हैं और कई गुटके भी होते हैं जिनमें बहुत सी छोटी-मोटी कृतियों का संकलन होता है। हमने इन सब लघु ग्रन्थों, स्फुट व त्रुटक पन्नों और गुटकों की पूरी छानबीन करके जो मुख्य या संकलनीय रचनायें प्रतीत हुई उनकी तो अलग अलग प्रविष्टियां कर दी है; तथा बाकी बचे हुए इन अमहत्वपूर्ण व अनुल्लेखनीय लघु गन्थों व पन्नों को मिलाकर एक ही क्रमांक पर विभागानुसार अंत में प्रविष्टि कर दी है। कदाचित् विषय की अधिक गहराई में जाने वाले के लिए इन लघुकृतियों व स्फुट त्रुटक व अपूर्ण पन्नों की उपयोगिता हो सकती है। इसी प्रकार गूटकों को भी क्रमांक देकर अलग से भी प्रविष्टि कर दी है। इस तरह हमने भण्डार की समस्त प्रतियों पूर्ण या अपूर्ण, गुटकों तथा स्फूट पन्नों व घटक या लघ ग्रन्थों आदि सबको सूची पत्र में ले लिया है -बाहिर कुछ भी नहीं छोड़ा है। स्तम्भ --2-स्रोत परिचयाङ्क : चूकि यह सूचीपत्र केटे लोगस केटे लोगोरम पद्धति से बनाया गया है अत: इस स्तम्भ की आवश्यकता है ताकि ग्रंथ उपलब्धि प्रासानी से की जा सके। भंडारों के सूचक अक्षरों का स्पष्टीकरण सुगम्य है-यथा प्रो0--1 अ 16 = प्रोसियां के भण्डार की इस नम्बर की प्रति कं0-47/3 श्री कथूनाथजी के मन्दिर के भण्डार की पोथी सैंतालीस प्रतिसंख्या तीन के0-2/4 श्री केशरियानाथजी के भण्डार की 2 नम्बर की पेटी की चौथी प्रति को0--1 कोलडी श्री पार्श्वनाथजी मन्दिर के भण्डार की एक नम्बर की प्रति म0-11 श्री महावीर स्वामी मंदिर के भण्डार की इस नम्बर की प्रति मु०--1946 श्री मुनिसुव्रत स्वामी मंदिर के भण्डार की इस नम्बर की प्रति से0-1958 सेवामन्दिर रावटी भण्डार की इस नम्बर की प्रति स्तम्भ 3-ग्रन्थ का नाम : जैन आगम भाग को छोड़कर प्रत्येक विभाग के ग्रन्थों को अकारादिक्रम से लिखा गया है और इसलिये सूचीपत्र में उल्लेखित ग्रन्थों को पुनः परिशिष्ट में अकारादिक्रम से सजाने की विशेष आवश्यकता नहीं समझी गई है। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 558