Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ संपादकीय मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहना नहीं चाहता। वह विकास चाहता है, परिष्कार चाहता है। विकास का एक साधन है शिक्षा। विकास के साथ अनेक समस्याएं भी जुड़ी हुई है। आज शिक्षा ने विकास के अनेक नए आयाम छुए हैं, लेकिन कुछ आयाम अभी भी अनछुए जैसे हैं। शिक्षा सर्वांगीण विकास के लिए है। किन्तु वह व्यक्ति सर्वांगीण विकास कर नहीं पा रहा है। इसका कारण यह नहीं है कि शिक्षा-पद्धति गलत है, किन्तु इसका कारण शिक्षा का अधुरापन है! आज शिक्षा से अच्छे वकील, डाक्टर, इन्जीनियर और वैज्ञानिक प्रतिभाएं प्रस्फुटित हो रही हैं लेकिन नैतिक एवं चारित्रिक मूलों से अनुप्राणित व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पा रहा है। आज की शिक्षा में इन मूल्यों के विकास की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है। उसमें बौद्धिक एवं शारीरिक विकास की संभावनाएं हैं पर मानसिक एवं भावात्मक विकास की संभावनाएं बहुत नहीं है। जीवन विज्ञान इस संभावना को साकार करने वाला उपक्रम है। यह नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों के विकास की पद्धति हे, मानसिक एवं भावात्मक विकास का प्रायोगिक उपक्रम है। अजमेर विश्वविद्यालय ने इसे बी० ए० के पाठ्यक्रम में शिक्षा की स्वतंत्र शाखा के रूप में स्वीकार कर इसकी उपयोगिता का मूल्यांकन किया है। प्रस्तुत पुस्तक 'जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग' बी० ए० के विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई है। युवाचार्यश्री मज्ञप्रज्ञ द्वारा जीवन विज्ञान के संदर्भ में जो आधार-भूत चिन्तन-मंथन किया गया है, हमने उसका समाकलन मात्र किया है। प्रस्तुत पुस्तक के समाकलन में मनि श्री दुलहराज जी एवं मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी की सक्रिय प्रेरणा रही है। जीवन विज्ञान के प्रयोग-पक्ष की कुछ सामग्री प्रेक्षाध्यान : आसन-प्राणायाम एवं यौगि क्रियाएं पुस्तक से ली गई हैं। हम इनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं। जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट ने इसे बी० ए० के विद्यार्थियों के लिए प्रकाशित किया है। हमारा विश्वास है- बी० ए० में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी। यह विद्यार्थियों में विकास की ही नहीं, परिष्कार की चेतना भी जगा पाएगी। २१ अगस्त '९२ जैन विश्व भारती लाडनूं मुनि धनंजय कुमार मुनि प्रशांत कुमार डॉ. संपत जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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