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* जिनवाणी संग्रह *
पट आवशि मंजन तजन, शयन भूमिको शोध ॥
अर्थ
-१ स्पर्शन ( त्वक् ), २ रसना, ३ घ्राण, ४ न्रक्षु, और श्रोत्र - इन पांच इन्द्रियोंका वश करना सो इन्द्रियदमन है (छह
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आवश्यक आचार्य के गुणोंमें देखो ) ॥३४॥
शेष सात गुण ।
वस्त्रत्याग कचलोंच अरु,
लघु, भोजन इकबार | दांतन मुखमें ना करें, ठाड़े लेहिं अहार ॥३५॥
अर्थ - १ यावज्जीव स्नानका त्याग, २ शोधकर (देख भाल कर) भूमिपर सोना, ३ वस्त्रत्याग (दिगम्बर होना ), केशोंका लौंच करना, ५ एक बार लघु भोजन करना, ६ दन्तधावन नहीं करना, ७ खड़े खड़े आहार लेना, इन सात गुणांसहित २८ मूल गुण सर्व मुनियोंके होते हैं ||३४||
साधर्मी भवि पाठनको, इएछतीसी ग्रन्थ ।
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अल्पबुद्धि बुधजन रच्यो, हिनमित शिवपुरपन्थ || इति पंचपरमेष्टी १४३ मूलगुणों का वर्णन समाप्त ।
२५ दर्शनपाठ ।
अनादिनिधन महामंत्र |
णमो अरहन्ताण', णमो सिद्धाण, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ १ ॥
मंदिरजी की वेदीगृह में प्रवेश करते हो “जय जय जय निःसहि, निःसहि निःसहि" इस प्रकार उच्चारण करके उपर्युक्त महामंत्रका ६ वार पाठ करे । तत्पश्चात् -