Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 190
________________ देव पूजा | ॐ ह्रीं अष्टादशदोषरहितष्ट चत्वारिंशद्गुणसहित अर्ध 1 अथ जयमाला । दोहा - गुण अनतको कहि सके, छियालीस जिनराय । ३५७ प्रगट सुगुन गिनती कहू, तुमहो होहु सहाय ॥ १ ॥ एक ज्ञान केवल जिनस्वामी । दो आगम अध्यातम नामी ፀ तीन काल विधि परगट जानी। चार अनंत चतुष्टय ज्ञानी ॥२॥ पंच परावर्तन परकासी । छहों दरबगुनपरजयभासी ॥ सात भागचानी परकाशक । आठों कर्म महारिषु नाशक ||३|| नव तत्वन के भाखनहारे । दशलच्छनसौं भविजन तारे । ग्यारह प्रतिमाके उपदेशी । बारह सभा सुखी अकलेशी ॥४॥ तेर हिविधि चारितके दाता चौदह मारगनाके ज्ञाता | पंद्रह भेद प्रमाद निवारी | सोलह भावन फल अविकारी ||५॥ तारे सत्रह अङ्क भरत भुव । ठारै थान दान दाता तुव ॥ भाव उनीस जु कहे प्रथम गुन । बीस अंक गण धरजीकी धुन ॥ ६ ॥ इकइस सर्व घात विधि जाने । बाइस बंध नवम गुन थाने ॥ तेइस निधि अरु रतन नरेश्वर । सो पूज' चौवीस जिनेश्वर || || नाश पचीस कषाय करी हैं। देशघाति छब्बीस हरी हैं ॥ तत्व दरब सत्ताइस देखे । मति विज्ञान अठाईस देखे ॥ ८ ॥ उनतिस अक मनुष सब जाने । तीस कुलाचल सर्व वखाने ॥ 1 कति पटल सुधर्म निहारे । बत्तिस दोष समाइक टारे ॥२॥ तेतिस सागर सुखकर आये । चोतिस भेद अलब्धि बताये ॥ तिस अच्छर जप सुखदाई । छत्तिस कारन रीति मिटाई ||१०|| सैंतिस मग कहि ग्यारह गुनमें । अड़तिस पद लहि नरक अपुनमें । उनतालीस उदीरन तेरम । चालिस भवन इंद्र पूर्जे नम ॥११॥ इक

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