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जिनवाणी संग्रह श
हुंचो शिवपुर सिद्ध मंकार ॥ २१ ॥ यो भव्य व्रतका सो प्रभाव । राज भोगि भयो शिवपुर राय ॥ जो नर नारि करे त सार । सुर सुब कहि पावे भव पार ॥ ३२ ॥
(१३) पुष्पांजलि व्रत कथा |
दोहा-वीर देवको प्रणमि कर, अर्चा करों त्रिकाल ।
पुष्पांजलि व्रतकी कथा, सुनो भव्य अघटाल ॥ खोपाई - पर्वत विपुलाचलपर आय । समोशरण जिनवरका पाय । तहां सुन राजा श्रेणिकराय । बन्दन चले प्रियायुत भाय ||२|| बन्दन कर पूछे नृप त । हे प्रभु पुष्पांजलि व्रत भबे ॥ मोसे कहो करों चित लाय । कोने को कहा भई आय ॥ ३ ॥ बोले गौतम वचन रसाल | जम्बू द्वीप मध्य सो विशाल । सीता नदी दक्षिण दिशि सार । मंगलावती सुदेश अपार ॥४॥
दोहा -रत्न संचयपुर तहां, वज्रसेन मप आय ।
जयवंती बनिता लसे, पुत्र बिहानी थाय ॥ ५॥
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खोपाई - पुत्र बाह जिन मन्दिर गई । श्रानोदधि मुनि वंदित भई ॥ हे मुनिनाथ कहो समझाय । मेरे पुत्र होइके नाय ॥ ६ ॥ दोहा -मुनि बोले हे वालकी, पुत्र होय शुभ सार । भूमि छह खंड सुसाधि है, मुक्ति तनो भरतार 101 सुनके मुनिके वचन तब, उपजो हर्ष अपार । क्रमसे पूरे मास नव, पुत्र भयो शुभ सार ॥८॥ यौवन वयस सो पायके, क्रोडा मण्डप सार । तहां व्योमसे बाहयो नम भूप रति सवार ॥॥ रक्षशेखरको देखकर बहुत प्रीति उर माहि । मेहनने पांच सो, विद्या दीनीं वाहि ॥१॥