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नदोश्वर प्रत कथा।
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एकासन कर लोय ॥४२॥ फल उपवास सहस्र दश होइ । अब सीजो दिन सुनिये लोह जिन पूजा कर पात्रहि दान । भोजन पानी भात प्रमान 18 नाम त्रिलोकसार दिन कहो । साठ लाख प्रोषध फल लहो ॥ चतुर्थ दिन कर आमौदर्य । नाम चतुमुख दिनसोहर्य ॥४४॥ तहां उपवास लक्ष फल हो । पञ्चम दिन विधि फरियो सोई । जिन पूजा एकासन करो। हय लक्षण जु नाम दिन धरो ॥ ४५ ॥ फल चौरासी लक्ष उपास । जासे जाय भ्रमण भव नास ॥ षष्टम दिन जिन पूजा दान । भोजन भात आमिलो पान ॥४६॥ ता दिन नाम स्वर्ग सोपान । ब्रत चालीस लक्ष फल जान ॥ सप्तम दिन जिन पूजा दान । कीजे भविजनका सन्मान ॥४७॥ सब सम्पति नाम दिन सोह। भोजन भात त्रिवेली होय ॥ फल उपवास लक्षकों जान । अष्टम दिन व्रत वितमें आन ॥ ४८॥ कर उपवास कथा रुचि सुनो। पात्र दान दे सुकृत गुनो ॥ इन्द्रध्वजवृत दिन तस नाम । सु मिरो जिनवर आठों जाम ।४। तीन करोड़ अति लाख पचास। यह फल होय हरे सब त्रास ॥ यह विधि आठ वर्षमें होइ । भाव सहित कीजे भवि लोइ ५० उत्तम सात वर्ष विधि जान । मध्यम पांव तीन लघु मान ॥ उद्यापन विधि पूर्वक सचो । वेदी मध्य माडनो रचो । ५१ । जिन पूजारु महा अभिषेक । चन्द्रोपम ध्वज कलश अनेक ॥ छत्र चमर सिंहासन करो । बहुविधि जिन पूजा अघ हरो ॥५२॥ चारों दान सुपात्रहि देउ। बहुत भक्ति कर विनय फरेउ । बहु विधि जिन प्रभावना होई। शक्ति समान करो मषि लोहे १५३॥ उद्यापनकी शक्ति न होय । तो दूनो व्रत की लो ।। जिन