Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 204
________________ श्री सम्मेदशिखर पूजाविधान । ३८७ मंगल दीक्षा धारत जोय । मंगल ज्ञान प्राप्तिमें जोय ॥ मङ्गल मोक्ष मगनमें जोय । इन्द्रन कीनों हर्षित होय । जाचू बार बार हों सोय । हे प्रभु ! दीजे मङ्गल मोय 1 इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत् ) ( =२) श्री सम्मेद शिखरपूजाविधान दोहा - सिद्धक्षेत्र तीरथ परम, है उत्कृष्ट सु थान ॥ शिखिर सम्मेद सदा नमौ, होय पापकी हान ॥१॥ अगनित मुनि जह तँ गए, लोक शिखिरके तीर । तिनके पद पंकज नमो, नासे भवकी पीर ॥२॥ अडिल छन्द - है वह उज्जल क्षेत्र सु अति निर्मल सही, परम पुनीत सुठौर महा गुनकी महो ॥ सकल सिद्धि दातार महा रमनीक है। वंदौ निज सुख देत अचल पद देत है ॥३॥ सोरठा - शिखिर सम्मेद महान, जगमें तीर्थ प्रधान है || महिमा अद्भुत ज्ञान, अल्पमती मैं किम कहो ॥ ४ ॥ पद्धरी छन्द - सरस उन्नत क्षेत्र प्रधान है। अति सु उज्जल तीर्थ महान है । करहि भक्तिसो जे गुन गाइ । वरहि शिव सुरनर सुख पायकें ॥ ५ ॥ अडिल छन्द-सुर हरि नरपति आदि सुजिन बन्दन करै । भवसागर ते तिरे नहीं भवदधि परें ॥ सुफल होय जो जन्म स जे दर्शन करें। जन्म जन्म के पाप सकल छिनमें टरें ॥६॥ पदरी छन्द - श्री तीर्थंकर जिनवर सु बीस 1 अरु मुनि असंख्य सब गुनन ईस ॥ पहुंचे जहं थे केवल सुधाम । तिन सबक अब मेरी प्रणाम ||७|| गीतका छन्द- सम्मेद गढ़ है तीर्थ भारी सबनको - उज्ज्वल करे । विरकालके जे कर्म लागे दरस ते छिनमें टरे ॥ है

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