Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 209
________________ दीपमालिकाविधान 1 ४०१ नरमदेव ० । ॐ ह्रीं श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय मोक्षपद प्राप्तये भलं ॥ ८ ॥ भरघ ले शुभ भाव चढ़ायके । धवल मङ्गलतूर बजायके । चरमदेव० । ॐ ह्रीं श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय सबैसुखप्राप्ताय अर्धं ॥ ८ ॥ अथ पंचकल्याणकं गाथा । मास आषाढ़ सुदीमे । षष्टीदिन जानि महा सुखकारी । त्रिसला गरम पधारे । तुमपद जजत अर्ध सीरी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय आषाढ़ सुदी ६ गर्भकल्याण काय अर्घ ॥ चैत्र त्रयोदशि कारी । तादिन जनमे प्रभाव बिस्तारी ॥ अर्ध महाकर धारी। जजव तिहारे चरण हितकारी ॥ ओं ह्रीं श्रीवीर जिनेन्द्राय चैत्रसुदीतेरसजन्मकल्याणकायअर्घं ॥२॥ दशमी अगहन बदीमें। लखि सबजग अथिर भये वैरागी ॥ प्रभू महाव्रत धारे। हम पूजत होत बड़ भागी ॥ ३ ॥ ओं ह्रीं श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय अगहनवदी १० तपकल्याणकाय अघ केवलज्ञानी हुवे । दशमी बैसाख सुदीके माहो । सकल सुरासुर पूजै । हम इह पद लखि अरघ चढ़ाही || ओं ह्रीं श्रीवोरनाथ जिनेन्द्राय बैसाखसुदी १० ज्ञानकल्याणकाय अर्ध कार्त्तिक नष्ट कलादिन । पावापुर के गहनते स्वामी ॥ मुकति तिया परनाई। हम चरण पूजि होत बड़ नामी ॥ ओं ह्रीं श्रीरमदेव महावीर जिनेन्द्रीय कार्त्तिकबदी अमावस निर्वाण कल्याणकाय अर्धं ॥ ५ ॥ २६

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228