Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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सरखतो पूजा। ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वती देव्यंजलं निर्पपामि । करपूर मंगाया, चन्दन आया, केशर लाया, रङ्ग भरी। शारदपद यंदौं, मन अभिन दौं, पापनिकंदौं दाह हरी ॥तीर्थ ॥२॥ ___ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वती देव्ये जलं निर्वपामि । सुखदास कमोद, धारकमोदं, अतिअनुमोदं, चंदसमं । बहुभक्ति बढ़ाई, कीरति गाई, होहु सहाई, मातामं ॥तीर्थं० ॥३॥ ___ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अक्षतान् निर्वपामि ॥३॥ बहुफू लसुवास, विमलप्रकाशं, आनदरासं, लाय धरै । मम काम मिटायौ, शील बढ़ायो, मुख उपजायो, दोष हरै ॥तीर्थं०
ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरातीदेव्यै पुष्पं निर्वपामि ॥४॥ पकवान बनाया, बहुघृत लाया, सब विध भाया, मिष्ट महा । पूजू थुति गाऊ', प्रीत बढ़ाऊ, क्षुधा नशाऊ, हर्ष लहा॥तीर्थं.
ओं ही जिनमुखोद्भगसरस्वतीदेव्यै नवेद्य निर्व पामी ॥६॥ करि दीपक ज्योतं, तमछय होतं, ज्योति उदोतं, तुमहिं चढ़े। तुम हो परकाशक, भरमविनाशक, हम घट भासक, ज्ञान बढ़े।ती. ___ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै दीपं निर्वपामि ॥६॥ शुभगंध दशोंकर, पावकमें धर, धूप मनोहर, खेवत हैं। सब पाप जलावे, पुण्य कमावै, दास कहावे खेवत हैं ॥तीर्थं०॥
ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्य धूपं निवपामि ॥७॥ बादाम छुहारी, लोंग सुपारी, श्रीफल भारी, ल्यावत हैं। मनवांछित दाता मेट असाता, तुम गुन माता, ध्यावत हैं ॥तीर्थ।।
ओं ही श्रीजिनमुखोद्गवसरस्वतीदेव्य फलं निर्व पामि ॥८॥ मयननसुख कारी, मृदुगुनधारी, उज्वलभारी, मोद धरै ।

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