Book Title: Jinvani Sangraha
Author(s): Satish Jain, Kasturchand Chavda
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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चारित्र पूजा।
चौपाई मिभित गोता छंद । सम्यकवारित रतन सँभालो। पांच पाप तजिकै व्रत पालो। पंचसमिति प्रय गुपति गही। नरभव सफल करहु तन छोजे। छीजें सदा तनकों जतन यह एक संजम पालिये। बहु रूल्यो नरकनिगोदमाहीं, कषायविषयनि टालिये ॥ शुभ करमजोग सुघाट आया पार हो दिन जात है । 'धानत' धरमकी नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है ॥ २ ॥ ओं ही प्रयोदशबिधिसम्यक्चारित्राय महायं ।
अथ समुच्चय जयमाला। दोहा-सम्यकदरशन ज्ञान प्रत, इन बिन मुकत न होय । अंध पंगु अरु आलसी, जुदे जले दव लोय ॥१॥
चौपाई १६ मात्रा। तापै ध्यान सुथिर बन आवै । ताके फरम बंध कट जाये।। . तासों शिवतिय प्रीति बढ़ावे। जो सम्त्रकरतनत्रय ध्यावे ॥२॥ ताकों बहुगतिके दुख नाहीं । सो न परे भवसागरमांहीं ॥ जनमजरामृतु दोष मिटावे । जो सम्यकरतनश्रय ध्यावे ॥३॥ सोई दशलच्छनको साधै। सो सोलहकारण आराधे ॥ सो परमातम पद उपजाये । जो सम्यकरतनत्रय ध्यावे ॥४॥ सोई शक्रवक्र पदलेई । तीनलोकके सुख विलसेई ॥ सो रागादिक भाव बहावै । जो सम्य करतनत्रय ध्यावे ॥५॥ सोई लोकालोक निहारे । परमानंददशा वि सतारे। आप तिरे औरन तिरवाय। जो सम्यकरतनत्रय ध्याच॥६॥ दोहा-एकस्वरूपप्रकाश निज, पवन कहो नहिं जाय ।
तीन भेद व्योहार सब, धानतको सुखदाय ॥७॥ नों ही सम्यप्रनत्रयाय महाय निर्वापामीति स्वाहा।

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