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जिनवाणी संग्रह।
बन्द भरी लोहे जंजीरा । मुनीशने आदोशको थुत की है गम्भीरा । चक्रश्वरी तब आनके झट दूर की पोरा ॥ हो०२० ॥ शिव कोटने हठता किया समन्तभद्र सो। शिवपिण्डकी बन्दन करो संको अभद्र सो॥ इस वक्त स्वयम्भू रवा गुरु भाव भद्र सो। जिन चन्द्रकी प्रतिमा तहां प्रगटो सुभद्र सो॥हो० २१ ॥ सूवेने तुम्हें आनके फल आम चढ़ाया। मैंडक ले चला फूल भरा भक्त का भाया ।। तुम दोनोंको अभिराम स्वर्गधाम बसाया। हम आपसे दातारको लख आज ही पाया ॥ २२ ॥ कपि स्वान सिंह नवला अज बैल विचारे। तिर्यंच जिन्हें रच न था बोध चितारे इत्यादिको सुरधाम दे शिवधाममें धारे । हम आपसे दातारको प्रभु आज निहारे ॥ हो० २३ ॥ तुमहीं अनन्त जन्तु कार भय भीड़ निवारा । वेदो पुराणमें गुरु गणधरने उचारा । हम आपकी शरणागतिमें आके पुकारा । तुम हो प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष इक्षु अहारा हो. २४ ॥ प्रभु भक्त व्यक्त जक्त भुक्त मुक्तके दानी । आनन्द कन्द वृन्दको हो मुक्तिके दानी। मोहि दान जान दीनबन्धु पातक भानी संसार विषय तार तार अन्तर यामी हो० २५॥ करुणा निधान वानको अब क्यों न निहारो। दानी अनन्त दानके दाता हो संभारो वृष चन्द नन्द बृन्दका उपसर्ग निवारो। संसार विषमक्षारसे प्रभु पार उतारो ॥ हो दीनबन्धु श्रीपति करुणा निधानजी। अब मेरी व्यथा क्यों न हरो वार क्या लगी ।। २६ ।।
(११) स्तोत्र भूदरदास कृत दोहा-कर जिन पूजा अष्ट विधि, भाव भक्ति बहु भाय ।
अब सुरेश परमेश थुति, करत शीश निज नाय ॥१॥