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navran
संकट हरण बिनती।
२५३ लगाया। रानीके कहे भूपने शूली पे चढ़ाया । उस वक्त तुम्हें सेठ ने निज ध्यान में ध्याया। शूलो से उतार उसको सिंहासन पै बिठाया । हो० १२ ॥ जब सेठ सुन्नाजी को बापी में गिराया । ऊपर से दुष्ट था उसे वह मारने आया । उस वक्त तुम्हें सेठने दिल अपने में ध्याया। तत्काल ही जंजाल से तब उसको बचाया ॥ हो. १२ ॥ एक सेठके घरमें किया दारिद्र ने डेरा। भोजन का ठिकाना भी था नहीं सांझ सवेरा । उस वक्त तुम्हें सेठ ने जब ध्यान में घेरा । घर उसके तबकर दिया लक्ष्मी का ब्रसेरा ।। हो. १४ ।। बलि बादमें मुनिराज सों जब पार न पाया। तब रातको तलवार ले शट मारने आया। मुनिराज ने निज ध्यानमें मन लीन लगाया। उस वक्त हो परतक्ष तहां देव बचाया ।। हो० १५ ॥ जब रामने हनुमन्त को गढ़लङ्क पठाया। सीता की खबर लेनेको विफौर सिधाया ॥ मग बीच दो मुनिराज की लख आगमें काया। झटवार मूसलधारसे उपसर्ग बुझाया ॥ हो० २६ ॥ जिननाथ ही को माथ नवाता था उदारा । घेरेमें पढ़ा था बह कुम्भकरण विचारा ॥ उस वक्त तुम्हें प्रेमसे संकटमें उचारा। रघुबीरने सब पीर तहां तुरत निवारा ॥हो० १७ ॥ रणपाल कुवर के पड़ी थी पांबमें बेरी। उस वक्त तुम्हें ध्यानमें धाया था सवेरी। तत्काल हो सुकुमार की सव झड़ पड़ी येरी । तुम राजकुवरको सभी दुख द्वन्द निवेरी ॥ हो० १८ ॥ जय सेठके नन्दन को डसा नाग जु कारा । उस वक्त तुम्हें पीरमें धरधीर पुकारा ॥ तत्काल ही उस बालका विषभूरि उतारा । वह जाग उठा सोके.मानो सेज सकारा ॥ हो० १८ ॥ मुनि मानतुङ्गको दई जब भूपने पीरा । तालेमें किया