Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ उधेड़बुन में रात निकली । दूसरे दिन सुबह प्रतिदिन की भाँति अखबार उठाया। जिस कोने में कल नम्बर छपे थे, आज वहीं एक अन्य विज्ञापन भी था। नजरें वहाँ गईं और आप दुःखी हो गए, क्योंकि उसमें एक कॉलम था, 'भूल सुधार' वहाँ लिखा था कि प्रथम इनाम के लिए कल जो लॉटरी खुली थी उसमें अंतिम नम्बर तीन के बजाय दो पढ़ा जाय। न रुपये आए और न गए, फिर भी वे सुख और दुःख दोनों दे गए। सुविधाओं के आधार पर जो लोग सुखी होते हैं, वे सुविधाएँ छिन जाने पर दुःखी हो जाते हैं। जो जीवन के आरपार सुखी होते हैं, वे सुविधाओं के चले जाने पर भी सुखी ही रहते हैं। आज मैं आपको कुछ ऐसे मंत्र देना चाहता हूँ कि जिन्हें यदि आप अपने पास सहेजकर रखते हैं, जिनको आप अपने मनमस्तिष्क में प्रवेश करने के लिए स्थान देते हैं, जिन्हें आप जीवन की दैनंदिन गतिविधियों के साथ जोड़ते हैं तो ये मंत्र आपके जीवन के कायाकल्प के लिए कल्याणकारी हो सकते हैं। ये मंत्र आपके जीवन के हर पल को सुखी बना सकते हैं। __मैं कभी ईश्वर से सुख की कामना नहीं करता। यह अटूट विश्वास है कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति कभी ईश्वर से दुःख की कामना नहीं करता पर हरेक को दुःख से गुजरना होता है वैसे ही सुख की कामना की जरूरत नहीं। जब दुःख अपने आप बिन मांगे आता है तो सुख को वैसे भी बिना मांगे स्वत: आने दीजिए। जीवन में चाहे सुख आये या दुःख दोनों का स्वागत तहेदिल से कीजिए सुख का स्वागत तो हर कोई करता है पर सुखी आदमी तभी हो पाता है जब जीवन में आने वाले दुःखों का स्वागत करने के लिए भी वह तैयार हो। इसे यों समझे - जैसे हमारे घर चाचाजी मेहमान बन कर आते हैं । हम । हम उनका सम्मान करते हैं और दो मिठाईयों के साथ उन्हें भोजन कराते हैं पर जाते समय वे हमारे बच्चे के हाथ नोट पकड़ा जाते हैं, यानि तीस का खाया सौ दे दिए। पर हमारे घर जंवाई भी आता है जिसका हम चाचाजी से भी ज्यादा सम्मान करते हैं और मान-मनहार पूर्वक चार मिठाईयों से जंवाई को भोजन भी करवाते है और चाचाजी तो जाते समय सौ रूपए देकर गए पर जंवाई को तो जाते समय सौ रूपए हम देते हैं। सुख दुःख का यही विज्ञान है। सुख आए तो समझो चाचाजी आए हैं और दुःख आए तो समझो जंवाई आया है। दोनों का सम्मान करो भाई। चाचाजी के सम्मान में कमी रह जाए तो चल भी जाएगा पर जंवाई के सम्मान में चूक न हो, सावधानी रखना। सादगी सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार यदि आप जीवन में खुशियाँ बटोरना चाहते हैं तो पहला मंत्र है-जीवन को सादगी-पूर्वक जीने की कोशिश करें। आपने सुना है-सादा जीवन उच्च -विचार । व्यवहार में सादगी हो, आचरण में श्रेष्ठता हो और विचारों में पवित्रता हो। तुम जितने ऊपर उठोगे उतनी ही विनम्रता तुम्हारे व्यवहार में आ जाएगी। आम के पेड़ पर लटकती हुई कैरी जब कच्ची होती है, तब तक अकड़ी हुई रहती है लेकिन जैसे-जैसे वह कैरी रस से भरती है, मिठास और माधुर्य पाती है, वैसे-वैसे वह आम में तब्दील होती हुई झुकना 11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 186