Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ श्री कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्यालयों कृत्याकृत्रिम-चारु-चैत्य-निलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान् | वंदे भावन-व्यंतर-द्युतिवरान् स्वर्गामरावासगान् || सद्गंधाक्षत-पुष्पदामचरुकैः सद्दीपधूपैः फलैः | नीराद्यैश्च यजे प्रणम्य शिरसा दुष्कर्मणां शांतये || ओं ह्रीं श्री त्रिलोकसंबंधि कृत्रिमाकृत्रिम-चैत्यालयस्थ-जिनबिम्बेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । श्री सिद्धपरमेष्ठी (संस्कृत) गन्धाढ्यं सुपयो मधुव्रत-गणैः संगं वरं चन्दनम् | पुष्पौघं विमलं सदक्षत-चयं रम्यं चरुं दीपकम् || धूपं गंधयुतं ददामि विविधं श्रेष्ठं फलं लब्धये | सिद्धानां युगपत्क्रमाय विमलं सेनोत्तरं वाँछितम् || ओं ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । श्री सिद्धपरमेष्ठी (भाषा) जल फल वसु वृंदा अरघ अमंदा, जजत अनंदा के कंदा | मेटो भवफंदा सब दुःखदंदा, 'हीराचंदा' तुम वंदा || त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी | शिवपुर विश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध जजामी शिरनामी || ओं ह्रीं श्रीअनाहतपराक्रमाय सर्वकर्मविनिर्मुक्ताय सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 15

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