Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 50
________________ श्री मल्लिनाथ जिन पानी सुगन्ध वर अक्षत पुष्पमाला। नैवेद्य दीप अरु धूप फलौघ आला।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। श्री मुनिसुब्रतनाथ जिन नीर आदि वसु द्रव्य मिलाय। शुभ-भवन सों अध्य बनाय।। पूजों श्री मुनिसुव्रत पाय। पूजत सकल अरिष्ट नसाय।। ओं ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। श्री नमिनाथ जिन जल गन्ध अक्षत सुमनमाला, चरु सु दीप जरायके। वर धूप नाना मधुर फल ले, अध्य शुद्ध बनायके।। पदअमल आकृति देखि दुखहर, पूजिये हरषाय के। जो जजें भोगे अनुपम, इन्द पदवी पायके।। ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपदप्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 50

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