Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ श्री अहिच्छत्र- पार्श्वनाथ - जिन संघर्षो में उपसर्गो में, तुमने समता का भाव धरा | आदर्श तुम्हारा अमृत-बन, भक्तों के जीवन में बिखरा || मैं अष्ट-द्रव्य से पूजा का, शुभ कर लाया हूँ | जो पदवी तुमने पाई है, मैं भी उस पर ललचाया हूँ || ओं ह्रीं श्रीअहिच्छत्र पार्श्वनाथजिनेन्द्र अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ श्री महावीर - जिन जल-फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरूं | गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरूं || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति - दायक हो || ओं ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। श्री आदिनाथ - जिन शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरू ले मन हरषाय | दीप धूप फल अर्घ सु लेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय || श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच - काय | हो करुणानिधि भव-दुःख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय || ओं ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 79

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116