Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
ओं ह्रीं पाँचभरत, पाँचऐरावत, दस क्षेत्र संबंधी तीस चौबीसियों के सात सौ बीस तीर्थंकरेभ्यः नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
विद्यमान बीस तीर्थंकरों जल-फल आठों दरव, अरघ कर प्रीति धरी है,
गणधर इन्द्रनि हू तें, थुति पूरी न करी है | ‘द्यानत' सेवक जानके (हो), जग तें लेहु निकार ||
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार | श्री जिनराज हो, भवि-तारणतरण जहाज (श्री महाराज हो) ||
अथवा
उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकैः |
धवल मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिनराजमहं यजे // ओं ह्रीं श्री सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजात-स्वयंप्रभ-ऋषभानन-अनन्तवीर्य-सूर्यप्रभविशालकीर्ति-ज्रधर-चन्द्रानन-भद्रबाहु-भुजंगम-ईश्वर-नेमिप्रभ-वीरसेन-महाभद्र-देवयशअजितवीर्य इति विदेह क्षेत्रे विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्यो नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा
95

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116