Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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मुक्ति गये सोनागिरि-शीश, ते वंदौं त्रिभुवनपति ईश।10।
रावण के सुत आदिकुमार, मुक्ति गये रेवा-तट सार। कोटि पांच अरु लाख पचास, ते वंदौं धरि परम हुलास।11।
रेवानदी सिद्धवर-कूट, पश्चिम दिशा देह जहं छूट। द्वै चक्री दश कामकुमार, उठकोडि वंदौं भव पार।12। बड़वानी बड़नयर सुचंग, दक्षिण दिशि गिरि चूल उतंग। इंद्रजीत अरु कुंभ जु कर्ण, ते वंदौं भव-सायर तर्ण।13। सुवरण-भद्र आदि मुनि चार, पावागिरिवर शिखर मंझार। चेलना-नदी-तीरके पास, मुक्ति गये वंदौं नित तास।14। फलहोड़ी बड़गाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप। गुरुदत्तादि-मुनीश्वर जहां, मुक्ति गये वंदौं नित तहां।15। बाल महाबाल मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय। श्री अष्टापद मुक्ति मंझार, ते वंदौं नित सुरत संभार।16।
अचलापुर की दिश ईसान, तहां मेंढ़गिरि नाम प्रधान। साढ़ तीन कोडि मुनिराय, तिनके चरण नमूं चित लाय।17।
वंसस्थल वनके ढिग होय, पच्छिम दिश कुंथुगिरि सोय। कुलभूषण देशभूषण नाम, तिनके चरणनि करूं प्रणाम।18।
जसरथ राजा के सुत कहे, देश कलिंग पांच सौ लहे। कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान, वंदन करूं जोड़ जुग पान।1।
समवसरण श्री पाश्व-जिनंद, रेसिंदीगिरि नयनानंद। वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते वंदौं नित धरम-जिहाज।20।
मथुरा नगरी पवित्र उद्यान, जम्बूस्वामी जी निर्वाण। चरमकेवली पंचमकाल, ते वन्दौं निज दीनदयाल।21।
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