Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 114
________________ निर्वाणकाण्ड (भाषा) दोहा वीतराग वंदौं सदा, भाव सहित सिरनाय । कहूं काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाय । 1 । चौपाई अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चंपापुरि नामि। नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वंदौं भाव-भगति उर धार । 2 । चरम तीर्थंकर चरम -‍ -शरीर, पावापुरी स्वामी महावीर । शिखर सम्मेदजिनेश्वर बीस, भाव सहित वंदौं निश-दीस | 3 | वरदत्तराय रु इंद्र मुनिंद्र, सायरदत्त आदि गुणवृंद। नगर तारवर मुनि उठकोडि, वंदौ भाव सहित कर जोडि | 4 | श्री गिरनार शिखर विख्यात, कोड़ि बहत्तर अरु सौ सात। संबु-प्रद्युम्न कुमर द्वे भाय, अनिरुद्ध आदि नमूं तसु पाय।5। रामचंद्र के सुत द्वै वीर, लाड-नरिंद आदि गुणधीर। पांच कोडि मुनि मुक्ति मंझार, पावागढ़ वंदौ निरधार।6। पांडव तीन, द्रविड़-राजान, आठ कोडि मुनि मुकति पयान । श्री शत्रुंजय-गिरि के सीस, भाव सहित वंदौं निश - दीस। 7 । जे बलभद्र मुकति में गये, आठ कोडि मुनि औरहु भये। श्री गजपंथ शिखर सुविशाल, तिनके चरण नमूं तिहूं काल। 8 । राम हनू सुग्रीव सुडील, गवय गवाख्य नील महानील। कोडि निन्याणवे मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वंदौं धरि ध्यान।। नंग अनंग कुमार सुजान, पांच कोडि अरु अर्ध प्रमान। 114

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