Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
क्षमावणी-पूजा जल फल आदि मिलाय के, अरघ करो हरषाय । दुःख जलांजलि दीजिये, श्रीजिन होय सहाय ॥
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर-वचन गहाय । ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनअष्टांगसम्यग्ज्ञान-त्रयोदशविध सम्यक्-चारित्रेभ्यो नमः
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
सप्तर्षि पूजा जल गन्ध अक्षत पुष्पचरुवर, दीप धूप सु लावना । फल ललित आठौं द्रव्य-मिश्रित, अर्घ्य कीजे पावना ॥ मन्वादि चारण-ऋद्धि-धारक, मुनिन की पूजा करूं।
ता करें पातक हरें सारे, सकल आनन्द विस्तरूं ॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्योअनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
पंच परमेष्ठी पूजन - कवि राजमल पवैया जी जल चंदन अक्षत पुष्प दीप, नैवेद्य धूप फल लाया हूँ।
अब तक के संचित कर्मों का, मैं पुंज जलाने आया हूँ। यह अर्घ्य समर्पित करता हूँ, अविचल अनर्घ्य पद दो स्वामी।
हे पंच परम परमेष्ठी प्रभु, भव-दुःख मेटो अंतर्यामी।। ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिभ्यः अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
112

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116