Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________ तीन लोक के तीरथ जहाँ, नित प्रति वंदन कीजे तहां। मन-वच-काय सहित सिरनाय वंदन करहिं भविक गुणगाय।221 संवत सतरहसौ इकताल, आश्विन सुदि दशमी सुविशाला भैया वंदन करहिं त्रिकाल, जय निर्वाणकांड गुणमाल।23। श्री निर्वाण क्षेत्र बड़ी पूजा (श्री निर्वाण लड्डू पूजा) अर्घ करौं निज माफिक शक्ति, पूजौं सिद्ध क्षेत्र करि भक्ति। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान।। अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान।। ऊँ ह्रीं भरतक्षेत्र श्री भरतक्षेत्र सम्बन्धी निर्वाण क्षेत्रेभ्यः अनध्य पद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। श्री रविव्रत जल गंधादिक अष्ट द्रव्य ले, अर्घ बनावो भाई। नाचत गावत हर्षभाव सों, कंचन थार भराई // पारसनाथ जिनेश्वर पूजो, रविव्रत के दिन भाई / सुख सम्पत्ति बहु होय तुरतहीं, आनन्द मंगल दाई // ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / 116

Page Navigation
1 ... 114 115 116