Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
नंदीश्वरद्वीप - जिनालयों
यह अरघ कियो निज-हेत, तुमको अर्पतु हूँ | ‘द्यानत’ कीज्यो शिव-खेत, भूमि समर्पतु हूँ ||
नंदीश्वर श्रीजिनधाम बावन पूज करूं | वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं || नंदीश्वरद्वीप महान्, चारों दिश सोहें | बावन जिनमंदिर जान, सुर-नर मन मोहें || ओं ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ
जिनप्रतिमाभ्यो अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दशलक्षण-धर्म
आठों दरब सम्हार, ‘द्यानत' अधिक उछाह सों |
भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजूं सदा ||
ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्माय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री सम्यक् रत्नत्रय
आठ दरब निरधार, उत्तम सों उत्तम लिये |
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ||
ओं ह्रीं श्री सम्यक् रत्नत्रयाय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
90

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116