Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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सप्तर्षि-अर्घ्य जल गंध अक्षत पुष्प चरुवर, दीप धूप सु लावना | फल ललित आठों द्रव्य-मिश्रित, अर्घ कीजे पावना || मन्वादि चारण-ऋद्धि-धारक, मुनिन की पूजा करूँ |
ता किये पातक हरें सारे, सकल आनंद विस्तरूँ || ओं ह्रीं श्री श्रीमन्वादि सप्तर्षिभ्यो अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री चौबीस-तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्र जल गंध अक्षत फूल चरु फल, दीप धूपायन धरूं | 'द्यानत' करो निरभय जगत् सों, जोड़ि कर विनती करूं ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चंपा, पावापुरि कैलास को |
पूजूं सदा चौबीस जिन, निर्वाणभूमि-निवास को || ओं ह्रीं श्री चतुर्विंशति-तीर्थंकर-निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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