Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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सोलहकारण-भाव जल फल आठों दरब चढ़ाय, ‘द्यानत' वरत करूं मन लाय |
परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो || दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर-पद-दाय |
___परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो || ओं ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्योऽनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
पंचमेरु-जिनालयों आठ दरबमय अरघ बनाय, ‘द्यानत' पूजू श्रीजिनराय |
महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय || पाँचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमाजी को करूं प्रणाम |
महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय || ओं ह्रीं श्री सुदर्शन-विजय-अचल-मन्दर-विद्युन्मालि-पंचमेरु-सम्बन्धि अशीति जिन
चैत्यालयस्थ-जिनबिम्बेभ्यो अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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